Chaitra Navratri 2023: नवरात्रि का तीसरा दिन माता चंद्रघंटा के नाम से जाना जाता है. इनकी आराधना से भक्त को वीरता और निर्भयता के साथ के साथ ही विनम्र और सौम्य स्वभाव प्राप्त होता है. इनके माथे पर अर्ध चंद्र आकार का घंटा दिखता है, जिसके कारण इन्हें मां चंद्रघंटा कहा जाता है. 


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कहानी


असुरों के प्रमुख महिषासुर ने असीम शक्ति प्राप्त कर देवताओं को हरा कर स्वर्ग पर भी कब्जा कर लिया तो देवता ब्रह्मा जी को लेकर ऐसे स्थान पर पहुंचे जहां विष्णु जी और शिव जी विराजमान थे. देवताओं ने अपनी आप बीती बताई तो उन्हें बहुत क्रोध आया. त्रिदेव की असीम शक्ति, ऊर्जा और तेज से एक ऊर्जा की पुंज निकला, जिसने विशाल देवी का स्वरूप ग्रहण किया तो सभी ने उन्हें प्रणाम कर महिषासुर से उद्धार दिलाने की प्रार्थना की. उनके सहमत होने पर सभी देवताओं और भगवानों ने उन्हें अस्त्र-शस्त्र दिए तो देवराज इंद्र ने अपना घंटा भेंट में दिया. घंटा स्वीकार करते ही वह देवी के मस्तक के एक तरफ अर्ध चंद्र के रूप में दिखने लगा, तभी से देवी का नाम चंद्रघंटा हो गया. स्वर्ण के समान चमकीला रंग होने के साथ ही माता के तीन नेत्र और दस हाथ हैं. इनके हाथों में कमल गदा, धनुष-बाण, त्रिशूल, खड्ग, खप्पर, चक्र आदि अस्त्र-शस्त्र हैं. शेर पर सवार देवी युद्ध लड़ने के लिए तैयार हैं. 


चंद्रघंटा शब्द के मायने  


चंद्रमा व्यक्ति की बदलती हुई भावनाओं, विचारों का प्रतीक होता है. जिस तरह चंद्रमा घटता और बढ़ता रहता है, ठीक उसी तरह हमारे मन में नकरात्मक भाव आकर, हमें निरुत्साहित और अशांत महसूस कराते हैं. हम कुछ तरीकों से इनसे पीछा छुड़ाने का असफल प्रयास करते हैं, क्योंकि कुछ समय के बाद फिर वैसे ही विचार मन मस्तिष्क पर आ जाते हैं. घंटा का अर्थ है किसी भी मंदिर के घंटे जैसा ही है. उसे चाहे जैसे बजाया जाए, हमेशा एक जैसी ही ध्वनि आती है. उसी तरह एक अस्त-व्यस्त मन विचारों में उलझा उलझा रहता है, लेकिन जब हम ईश्वर के प्रति एकाग्र हो जाते हैं तो दैवीय शक्तियों का उदय होता है और यही चंद्रघंटा शब्द के मायने भी हैं. 


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