Chhath Pooja Importance: दिवाली के तुरंत बाद होने वाले छठ पूजा पर्व का खास महत्व है. कार्तिक माह की षष्ठी यानी दीपोत्सव से ठीक छठे दिन मनाए जाने वाले इस पर्व में लोग डूबते और फिर उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं. इस बार यह पर्व 30 अक्टूबर (रविवार) को पड़ेगा. मान्यता के अनुसार यह पर्व चतुर्थी से प्रारंभ होकर सप्तमी की सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के साथ पूर्ण होता है. कहा जाता है कि इस पर्व पर विधि विधान से पूजा करने से भक्तों के सभी दुख दर्द और कष्ट दूर होते हैं. उनके मान सम्मान और धन वैभव में वृद्धि होती है.


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कथाओं में छठ पूजा


लोक मान्यताओं में छठ पूजा को लेकर अनेक पौराणिक और लोक कथाएं प्रचलित हैं. एक मान्यता के अनुसार, लंका पर विजय के बाद राम राज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया और सूर्यदेव की आराधना की. श्री राम और सीता ने व्रत रखने के बाद सप्तमी को सूर्योदय के समय सूर्यदेव को अर्ध्य देकर उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया था. वहीं, एक अन्य मान्यता के अनुसार छठ पर्व पर अर्घ्य देने की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी. सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्य देव को जल का अर्घ्य देकर यह परंपरा शुरू की थी. आज भी छठ में अर्घ्य की यही पद्धति प्रचलित है. कुछ कथाओं में पांडवों की पत्नी द्रौपदी की ओर से भी सूर्य की पूजा करने का उल्लेख है. वह अपने परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और लंबी उम्र के लिए सूर्य की पूजा करती थीं.


ये भी है एक मान्यता


एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, राजा प्रियवद के कोई संतान नहीं थी. महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनाई गई खीर दी. उन्हें पुत्र तो हुआ, लेकिन वह जीवित नहीं रहा. प्रियवद पुत्र को लेकर श्मशान गए. उसी वक्त भगवान की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुईं और उन्होंने कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी  कहलाती हूं. राजा ने उनके बताए अनुसार देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें संतान की प्राप्ति हुई. बाद में षष्ठी को ही छठी मैया या छठ मैया कहा जाने लगा.



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