Chhath Puja: सामाजिक सरोकारों से जुड़ा है छठ पूजा पर्व, इन संसाधनों का सम्मान करने का देता है संदेश
Chhath Puja 2022: छठ पूजा पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने का पर्व है. जैसे उगते सूर्य को जल का अर्घ्य देते हैं, उसी तरह से डूबते सूर्य को भी. समाज का यह कार्य बताता है है कि हम समान भाव रखते हैं.
Chhath Festival 2022: भारतीय दर्शन में प्रकृति के विविध साधनों के प्रति सनातन से समादर का भाव रहा है. सूर्य, चंद्र, वृक्ष, नदी, वायु, अग्नि को पूजने का अर्थ ही उनके प्रति आदर और कृतज्ञता व्यक्त करना है. दुनिया चाहे जितना भी आधुनिकता में आगे चली जाए, तकनीक के क्षेत्र में चाहे, जितने अविष्कार हो जाएं, किंतु यह प्रतीक हमारे मन व जीवन में सदैव बने रहेंगे. चिह्न व प्रतीक हमें इनका सम्मान करने और सदैव आगे बढ़ते रहने को प्रेरित करते हैं. हम अपने जीवन को वैसा ही बनाने का प्रयत्न करते हैं, जैसा स्वाभाविक होता है.
आज के समय में वृक्ष, सूर्य, चंद्र सभी पर ग्लोबल वार्मिंग के चलते पर्यावरणीय प्रभाव गहरे हो रहे हैं. प्रदूषण बढ़ता जा रहा है. ऐसे में पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखना प्रत्येक मानव का कर्तव्य है. जहां तक छठ पूजा का सवाल है, वह भी एक तरह से देखें तो पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने का ही पर्व है. जैसे उगते सूर्य को जल का अर्घ्य देते हैं, उसी तरह से डूबते सूर्य को भी. समाज का यह कार्य बताता है है कि हम समान भाव रखते हैं. याद कीजिए- सुखे दुःखे समें कृत्वा, लाभालाभौ जया जयौ यानि सुख व दुख, लाभ व हानि, सब में समभाव होना चाहिए. लोक कवि कबीर दास ने भी कहा कि दुख में सुमिरन सबकरें, सुख में करे न कोय, जो सुख में सुमिरन करे तो दुख काहे का होय अर्थात प्रभु का स्मरण दुख और सुख दोनों ही स्थितियों में करने पर कोई कष्ट नहीं होता है.
पर्यावरण संतुलन का पर्व है छठ
इस मौसम में मिलने वाले सभी फलों को छठ पूजा में प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है. इस प्रकार हम पर्यावरण को बचाने वाले वृक्षों व वनस्पतियों के प्रति कृतज्ञता अर्पित करते हैं. नदी में सूर्य को अर्घ्य देने का तात्पर्य यह भी है कि पानी को हम पवित्र रखेंगे, तभी हमारे स्नान करने व अर्घ्य देने का आनंद है. गंदे व प्रदूषित जल का उपयोग न तो निजी जीवन में किया जाता है और न ही किसी देवता को अर्पित किया जाता है या यू कहा जाए कि किसी प्रिय को प्रदूषित वस्तु खाने पीने के लिए क्यों दें. जल प्रदूषण के प्रति जागरुकता भी हमें इसी पर्व से प्राप्त होती है. एक मान्यता के अनुसार, छठ में सूर्य की अल्ट्रावायलेट यानी पराबैंगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं, कहते हैं कि यह पर्व उनके कुप्रभाव से रक्षा करने के लिए हमें पर्यावरणीय संतुलन बनाने की प्रेरणा देता है.