Mother Lakshmi Incarnated: कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की अमावस्या को समुद्र मंथन के परिणाम स्वरूप महालक्ष्मी की जन्म हुआ था. हम जिन लक्ष्मी जी की आराधना करते हैं, वह अभी भी प्रतिवर्ष समुद्रमंथन से ही निकलती हैं. ज्योतिष शास्त्र, भूगोल या खगोल शास्त्र की दृष्टि से देखें तो सूर्य को भी ग्रहों का केंद्र एवं राजा माना गया है.


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समुद्र मंथन में भगवान विष्णु की भूमिका


सूर्य की बारह संक्रांतियां होती हैं. सभी जानते हैं कि समुद्र मंथन में भगवान विष्णु की बड़ी भूमिका रही है और सूर्य ही भगवान विष्णु स्वरूप हैं. सूर्य अपने पथ पर छह माह उत्तर और छह माह दक्षिण गोल में विचरण करते हैं, जिससे क्रमशः देवभाग और राक्षस भाग कहा जाता है. मंदराचल पर्वत ही वह नाड़ीवृत है, जिसके एक भाग में मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह व कन्या राशि रहती हैं, जिन्हें देवता खींचते हैं, तथा दूसरे भाग में तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ व मीन राशि हैं, जिन्हें राक्षस खींचते हैं. इस समुद्र मंथन से ही 14 रत्न अलग-अलग समय पर निकलते हैं, जिनमें महालक्ष्मी कार्तिक मास की अमावस्या को प्रकट होती हैं.


महालक्ष्मी के रूप में बनीं भगवान विष्णु की पत्नी  


लक्ष्मी, महालक्ष्मी, राज लक्ष्मी, नाम लक्ष्मी के ही रूप हैं और लक्ष्मी विहीन होने पर ही लोग ज्योतिष की शरण में जाते हैं और उपाय जानने का प्रयास करते हैं कि कैसे उन्हें भी लक्ष्मी जी की प्राप्ति हो. यूं तो दीपावली के पर्व को लेकर पुराणों में कई कथाएं प्रचलित हैं, किंतु वास्तव में कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन पृथ्वी का जन्म हुआ था और पृथ्वी ही महालक्ष्मी के रूप में भगवान विष्णु की पत्नी के रूप में मानी गई हैं. पृथ्वी का जन्म होने के कारण ही इस दिन घरों की सफाई करके दरिद्रता को कूड़ा करकट के रूप में घर के बाहर निकाला जाता है. घर में सब ओर ज्योति करके श्री कमला लक्ष्मी का आह्वान किया जाता है. दीपावली से पूर्व अच्छी वर्षा से धन-धान्य की समृद्धि रूपी लक्ष्मी का आगमन होता है. लक्ष्मी का आगमन भी दक्षिण से ही होता है, इसीलिए आज भी भारतीय किसान खेत में फसल की कटाई दक्षिण भाग से शुरू करते हैं.


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