RAM KATHA: मंदोदरी की ज्ञान भरी बातों को भी दंभ में डूबा रावण नहीं समझ सका, जानिए मंदोदरी को क्या जवाब दिया
Ramayan Story in Hindi: मंदोदरी ने कई तरह से रावण को समझाने की कोशिश की कि श्री राम विश्वरूप हैं इसलिए वैर भुला कर उनके चरणों में प्रेम कीजिए और सीता जी को उन्हें लौटा दीजिए. दंभ में डूबे रावण को अपनी पत्नी मंदोदरी की बातें समझ में ही नहीं आईं.
Ramayan Story: रावण अपने दंभ में कितना डुबा हुआ था? उसकी कई कहानी आपने पढ़ी और सुनी होंगी. ऐसी ही एक कहानी आपके लिए हम लेकर आए है. रावण की पत्नि मंदोदरी ने भी रावण को खूब समझाया था कि राम जी से बैर ना ले. श्री राम विश्वरूप हैं इसलिए उनसे बैर भुला कर उनके चरणों में प्रेम कीजिए और सीता जी को उन्हें लौटा दीजिए. लेकिन उसने अपनी पत्नि की भी नहीं सुनी.
एक ही बाण से दो निशाने लगाए थे श्री राम जी ने
प्रभु श्री राम सीता जी को लेने के लिए लंका पहुंच थे. वहां उन्होंने सुबेल पर्वत पर सेना के साथ डेरा डाला. वहीं से श्रीराम ने रावण के महल में राजरंग होता देखा. उसके बाद रावण का दंभ तोड़ने के लिए श्री राम ने बाण छोड़ा. श्री राम ने एक ही बाण से रावण का छत्र मुकुट और रानी मंदोदरी के कान की बाली काट दी थी. उसके बाद लंका में सभी सतर्क हो गए. लेकिन रावण इस घटना पर भी हंसता रहा. जैसे कुछ हुआ ही नहीं.
मंदोदरी को हुई आशंका
इस घटना के बाद सभी सतर्क हो गए थे. रावण की पत्नि मंदोदरी को भी कुछ आशंका हुई. उसके बाद उन्होंने रावण को फिर समझाने का प्रयास किया कि अभी भी समय है. सीता को राम के पास पहुंचा दीजिए. मंदोदरी ने कहा कि श्री राम तो विश्वरूप हैं. शिव जी उनका अहंकार, ब्रह्मा बुद्धि, चंद्रमा मन और विष्णु जी चित्त हैं.
मंदोदरी की बात सुन रावण बहुत जोर से हंसा
मंदोदरी ने रावण से आग्रह किया कि प्रभु श्री राम से बैर छोड़कर उनके चरणों में प्रेम कीजिए जिससे आप सुरक्षित बने रहें. लेकिन रावण हंसता रहा. उसके बाद मंदोदरी ने मन ही मन निश्चय कर लिया था कि मेरे पति काल के प्रभाव में आ गए हैं और उनकी मतिभ्रम हो गयी है.
घमंडी लंकापति रावण, सभा में पहुंच गया
अज्ञानतापूर्ण बातें करते हुए रावण को सबेरा हो गया और वह सभा में पहुंच गया. इस पर गोस्वामी तुलसीदास जी राम चरित मानस में लिखते हैं कि इसी तरह की अज्ञानतापूर्ण बातें करते हुए रावण को सुबह हो गयी. स्वभाव से निडर और घमंडी लंकापति रावण सभा में पहुंचा. रामचरितमानस में तुलसीदास जी लिखते हैं जिस तरह बादल अमृत जैसा जल बरसाएं तो भी बेत फलता फूलता नहीं है. ठीक उसी तरह ब्रह्मा जी के समान ज्ञानी गुरु मिल जाएं तो भी मूर्ख व्यक्ति के हृदय में ज्ञान नहीं पहुंच पाता है.
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