Vijayadashami: दशहरा अर्थात विजयादशमी के दिन अन्याय और अत्याचार के प्रतीक स्वरूप रावण का पुतला फूंका जाता है. यह पर्व भारत ही नहीं वरन विश्व के न जाने कितने ही देशों में रामलीला के मंचन के बाद श्रीराम द्वारा रावण के वध के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. सभी जानते हैं कि भगवान शंकर का परम भक्त और शिव तांडव स्तोत्र का रचयिता रावण प्रकांड विद्वान था, फिर क्या कारण था कि वह सृष्टि के रचनाकार ब्रह्मा जी के मानस पुत्र ऋषि पुलत्स्य के परिवार अर्थात ब्राह्मण कुल में जन्म लेने के बाद भी राक्षस बना. 


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अवतार


पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान विष्णु के दर्शन करने सनतकुमार, सनंदन आदि ऋषि वैकुंठ पधारे किंतु उनके द्वारपाल जय और विजय ने बिना आज्ञा उन महान ऋषियों को प्रवेश करने से मना कर दिया. द्वारपाल के इस आचरण से क्रोधित ऋषियों ने उन दोनों को राक्षस होने का शाप दे दिया. इस पर दोनों को अपनी भूल समझ में आई और उन्होंने ऋषियों से क्षमा मांगी. तब तक  विष्णु जी को इस घटनाक्रम की जानकारी हुई तो वह द्वार पर आए और वस्तुस्थिति बताते हुए कहा कि दोनों को क्षमा कर दीजिए. इसमें इनकी कोई गलती नहीं है, इन दोनों ने तो मेरी आज्ञा का पालन किया है. 


तब तक ऋषियों का क्रोध भी कम हो चुका था और उन्होंने शाप की तेजी को कम करते हुए कहा कि तीन जन्मों तक राक्षस रहने के बाद ही इन्हें इस योनि से मुक्ति मिलेगी किंतु इसके लिए विष्णु जी को ही अवतार लेकर तुम्हें मारना होगा. इस तरह पहले जन्म में वे दोनों हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु हुए फिर दूसरे जन्म में रावण और कुंभकरण के रूप में जन्मे और श्री राम ने उनका उद्धार किया तथा तीसरे जन्म में वे शिशुपाल और दंतवक्त्र बने जब श्री कृष्ण ने उनका उद्धार किया. रावण और कुंभकरण के रूप में उन्होंने ऋषि विश्रवा की पत्नी कैकसी के गर्भ से भाई बहन के साथ जन्म लिया. ऋषि विश्रवा पुलस्त्य ऋषि के पुत्र थे जिन्हें स्वयं ब्रह्मा जी ने मनुष्यों के बीच पुराणों के ज्ञान का प्रसार करने के लिए भेजा था.