Ganesh Chaturthi Katha: अत्याचारों से तंग देवताओं के आग्रह पर लोभासुर का संहार करने निकले गजानन के सामने जैसे ही असुर शरणागत हुआ तो गणेश जी ने उसे अभयदान देते हुए पाताल लोक में रहने की आज्ञा दी. भगवान् श्रीगणेश ने लोभासुर का वध करने के लिए ही गजानन रूप में अवतार लिया. एक बार देवताओं के कैशियर कुबेर कैलास पर्वत पहुंचे और भगवान शिव  पार्वती के दर्शन के साथ ही भगवती उमा के सौन्दर्य पर मुग्ध हो उन्हें एकटक निहारने लगे. इससे मां पार्वती क्रुद्ध हो गयी तो भयभीत कुबेर से लोभासुर उत्पन्न हुआ. वह अत्यंत प्रतापी और बलवान था. लोभासुर दैत्यगुरु शुक्राचार्य के पास पहुंचा प्रणाम कर उनसे शिष्य बनाने का आग्रह किया. गुरु ने उसे पंचाक्षरी मंत्र  ॐ नमः शिवाय  की दीक्षा देकर तपस्या करने भेज दिया. निर्जन वन में अन्न  जल का त्याग कर पंचाक्षरी मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए घोर तप करने लगा. तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और  लोभासुर की इच्छा के अनुसार औढरदानी भगवान शंकर ने वर देकर उसे तीनों लोकों में निर्भय कर दिया.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

लोभासुर के आतंक से परेशान हुए देवता
लोभासुर ने दैत्यों की विशाल सेना एकत्र की और पृथ्वी के सभी राजाओं को जीत लिया. फिर उसने स्वर्ग पर आक्रमण कर इन्द्र को पराजित किया और अमरावती पर अधिकार कर लिया. हारे हुए इन्द्र ने भगवान विष्णु से अपना कष्ट बताया. विष्णु जी गरुड़ वाहन पर चढ़कर उसका संहार करने पहुंचे किंतु उन्हें भी लोभासुर के सामने हार का मुंह देखना पड़ा. विष्णु व अन्य देवताओं का रक्षक मान लोभासुर ने अपना दूत शिव जी के पास भेज युद्ध करने या कैलास को खाली करने के लिए कहा. भगवान शंकर को अपना वरदान याद आया और कैलास छोड़ दिया. लोभासुर के राज्य में पाप कर्म बढ़ गए तथा धर्म समाप्त हो गया. 


गजानन की महिमा जान मांगा शरण
रैभ्य मुनि के कहने पर देवताओं ने गणेश जी की उपासना की. प्रसन्न होकर गजानन ने शिव जी को लोभासुर के पास भेजा तो उन्होंने गजानन का संदेश सुनाया कि तुम गजानन की शरण लेकर शांतिपूर्ण जीवन बिताएं वर्ना उनसे युद्ध के लिए तैयार हो जाओ. गुरु शुक्राचार्य ने भी भगवान गजानन की महिमा बताकर शरण लेने की आज्ञा दी तो उसे गणेश तत्व समझ में आया. बस फिर तो वह गजानन के चरणों की वंदना करने लगा और शरणागत वत्सल गजानन ने उसे क्षमा कर पाताल भेज दिया. देवता और मुनि सुखी होकर गजानन का गुणगान करने लगे.