Ganesh Chaturthi Katha: गणेश चतुर्थी पर जानें बप्पा की कथा, जानें क्यों लिया था महोदर का अवतार
Ganesh Chaturthi 2023: भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से लेकर 10 दिनों तक श्री गणेश महोत्सव पूरे देश में मनाई जाएगी. इस बार चतुर्थी 19 सितंबर को होगी और 28 सितंबर को चतुर्दशी के दिन गणपति का विसर्जन होगा. भगवान गणेश और भी कई नाम से जाने जाते हैं, जैसे लंबोदर, विघ्नहर्ता और महोदर. आइए गणेश चतुर्थी के अवसर है जानते हैं, भगवान गणेश के महोदर अवतार का कथा.
Ganesh Chaturthi Katha: भगवान् श्रीगणेश का एक अवतार महोदर भी है, यह अवतार उन्होंने मोहासुर नामक अति बलशाली असुर के संहार के लिए लिया लेकिन उन्हें देखते ही उस असुर को सद्बुद्धि प्राप्त हुई. उसने क्षमा मांगते हुए कहा कि अब वह कभी भी ऋषि मुनियों और देवताओं को परेशान नहीं करेगा. इस अवतार में उनका वाहन मूषक ही था.
सूर्यदेव ने मोहासुर को दिया मनचाहा वरदान
दैत्य गुरु शुक्राचार्य का एक शिष्य था मोहासुर. उसने एक दिन अपने गुरु से कहा कि इतना बलशाली होना चाहता है कि कोई उसे युद्ध में पराजित न कर सके. इस पर गुरु शुक्राचार्य ने भगवान सूर्य नारायण की आराधना करने का आदेश दिया. उसकी कठोर तपस्या से भगवान सूर्य प्रसन्न हो गए और उन्होंने उसे मनचाहा वरदान दे दिया जिस पर शुक्राचार्य ने दैत्यराज के पद पर उसका अभिषेक किया. इसके बाद उसने अपने पराक्रम से तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया. देवताओं और ऋषि मुनियों को पहाड़ों व जंगलों में छिपना पड़ा. हर तरह से निश्चिंत हो कर मोहासुर अपनी पत्नी मदिरा के साथ सुखपूर्वक जीवन जीने लगा. उसके राज्य में धर्म, सत्कर्म, यज्ञ, तप आदि सब नष्ट हो गए. दुःखी देवता ऋषियों के साथ भगवान सूर्य के पास गए और उनसे इस संकट से मुक्ति का उपाय पूछा.
मोहासुर के आतंक से बचाने के लिए भगवान गणेश ने लिया महोदर का अवतार
भगवान् सूर्य ने उन्हें एकाक्षर मंत्र देकर गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए कहा. उनकी और मुनिगण श्रद्धा - भक्तिपूर्वक भगवान् महोदर की उपासना करने लगे । ऋषियों और देवताओं की तपस्या से संतुष्ट होकर महोदर के रूप में गणेश जी प्रकट हुए. उन्होंने मोहासुर के अत्याचारों का वर्णन किया तो भगवान महोदर बोले, मैं उसका वध करूंगा. इतना कहकर वह अपने वाहन मूषक पर सवार होकर मोहासुर से युद्ध करने के लिए चल दिए. देवर्षि नारद ने मोहासुर को यह सूचना देकर भगवान महोदर की अनंत शक्ति के बारे में समझाते हुए दैत्यगुरु शुक्राचार्य के पास भेजा तो उन्होंने शरणागत होने की सलाह दी. उसी समय भगवान महोदर का दूत बनकर विष्णु जी मोहासुर के पास पहुंचे और मित्रता करने का सुझाव दिया नहीं तो मृत्यु तय है. मोहासुर का अहंकार नष्ट हो गया और जब भगवान महोदर उसके नगर में आए तो जोरदार स्वागत कर उनसे गलतियों की क्षमा मांगी. भक्त वत्सल भगवान महोदर उसके व्यवहार से प्रसन्न हो गए और अपनी भक्ति दी. इससे सभी नर नारी सुखी, देवता मुनि सुखी हो गए और भगवान महोदर की जयकार करने लगे.