Ganesh Chaturthi Katha: इन दिनों हर तरफ गणपति की धूम मची है, खास तौर पर बॉलीवुड में हर किसी ने अपने यहां गणपति को विराजमान किया है लोग भी जानने के उत्सुक हैं कि जिन्हें हम सिने स्क्रीन पर देखते हैं, वह भी अपनी निजी जिंदगी में किस तरह भगवान की आराधना करते हैं. भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष में चतुर्थी अर्थात 19 सितंबर से शुरू हुए गणेश महोत्सव 28 सितंबर अनंत चतुर्दशी के दिन पूर्णता को प्राप्त होगा. आप देख ही रहे होंगे अलग अलग आकार के मन को लुभाने वाले गणपति पंडालों में विराजमान हैं. आइए इनके स्वरूप को समझने का प्रयास करते हैं. सामान्य तौर पर गणपति की सूंड़ बायीं ओर मुड़ी और बाएं हाथ में मोदक या लड़्डू रहता है जबकि दाहिना हाथ वरद मुद्रा में आशीर्वाद देता हुआ रहता है.  


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गणपति स्वरूप 
गणपति जी का स्वरूप अन्य सभी देवताओं से अलग है. सिर हाथी का होने के कारण उनके कान भी सूपाकार हैं और नाक के रूप में बड़ी सी सूंड़, छोटी आंखें,  बड़ा सिर, दिखाने के दांत अलग और खाने के दांत अप्रत्यक्ष. बड़ी सी तोंद यानी निकला  हुआ पेट, जनेऊ के रूप में अनन्त नाग देवता हैं. उनके हाथी का सिर होने की कथा तो सभी को मालूम है कि शिव जी ने ही अपने त्रिशूल से उनका सिर अलग कर दिया था फिर माता पार्वती पार्वती के कहने पर शिव जी ने उन्हें जीवित करने के लिए दंभ रहित गुणों से पूर्ण गज का सिर लगाया  यानी एक तरह से ब्रेन ट्रांसप्लांट किया.   


गज के सिर के गुण
गज के सिर में बहुत सारे गुण हैं जिसको समझने की आवश्यकता है. जब तक स्वरूप नहीं समझेंगे तब तक उनके प्रति सच्ची श्रद्धा और भाव नहीं उत्पन्न होगा. किसी भी जीवन का सिर जितना बड़ा होगा उतनी ही लंबी ब्रेन की नर्व होगी. यह नर्व जितनी घनी और लंबी लंबी होती है, उसकी स्मरण शक्ति उतनी ही अधिक होती है. हाथी की स्मरण शक्ति बहुत अधिक होती है. पशुओं के स्वभाव के जानकार जानते हैं कि हाथी को जन्मों की बात तक याद हो सकती है. श्री गणपति जी को यह शीश प्राप्त हुआ उसके पीछे विधि के विधान की अहम भूमिका थी. गणपति जी बुद्धि के देवता कहे जाते हैं, सर्वाधिक बुद्धिमान होने के पीछे उनका यही शीश है.