Ganpati Bappa Rahsya: भगवान गणेश का स्वरूप सभी देवताओं से अलग हैं, गणपति जी का स्वरूप दिखने में बहुत ही विशालकाय है लेकिन ज्ञान और बुद्धि से पूर्ण होने के कारण उनके अंदर अहंकार का लेशमात्र भी नहीं है, जिससे उनमें भार नहीं है. जिनमें भार नहीं होता वह वजन में वायुतत्व के समान होता है और यही कारण है कि मूषक उनका वहन बनकर गौरवान्वित होता है. 


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दांत
गज का दांत बहुमूल्य होता है. पुराणों में दांत को माया का रूप माना गया है और गणपति जी का दांत तो बहुमूल्य है. गणेश जी का एकदंत होना यह बताता है कि गणपति जी माया से परे हैं, वह माया के बंधन में जकड़े नहीं बल्कि मुक्त हैं. यहां पर समझने वाली बात यह है कि गणपति जी के पहले दोनों दांत थे. एक बार भगवान परशुराम से युद्ध के दौरान उनका एक दांत टूट गया जिसके बाद से यह एकदंत कहलाने लगे. जब महाभारत को लिखने का निर्णय हुआ तो उसे गणपति जी ने ही लिखा और भगवान वेदव्यास ने उसे बोला. गणपति जी ने उसी टूटे हुए दांत से महाभारत लिखी. इस तरह गणपति जी यह भी बताना चाह रहे हैं, कि माया और लोभ के कारण ही महाभारत हुई इसलिए जिन भक्तों पर माया का बंधन कम से कम रहेगा उन्हें वह सदा आशीर्वाद देंगे.  


बड़ी तोंद
बड़ी तोंद का अभिप्राय सारगर्भित होना है. बड़े पेट का आशय यहां कई प्रकार के ज्ञान और रहस्यों का भंडार है. बड़ा पेट गंभीरता और गरिष्ठता लिए हुए है. इस माध्यम से भक्तों के लिए उनका संदेश है कि सारगर्भित चीजों को ही ग्रहण करें और ग्रहण करने के बाद उसको उदरस्थ रखें. 


जनेऊ
गणपति जी के जनेऊ के रूप में नाग देवताओं में अनंत नाग विराजित हैं. पिता महादेव की भांति गणपति जी के शरीर में भी नाग श्रंगारित हैं. नाग दो भागों में राहु और केतु के रूप में है जिनका संबंध मंत्र और तंत्र दोनों से है. तंत्र का मतलब कोई टोना टोटका नहीं है. तंत्र का अर्थ है सिस्टम और मंत्र उस सिस्टम की ऊर्जा यानी पॉवर सप्लाई है. जब मंत्र को तंत्र के साथ मिला दिया जाता है तो यंत्र बन जाता है. गणेश जी हर तरह की इंजीनियरिंग के ज्ञाता हैं. मंत्र तंत्र और यंत्र की आज के इस भौतिक युग में बहुत आवश्यकता है और यह बिना गणपति के आशीष के नहीं प्राप्त हो सकती है.