Guru Purnima: परम ब्रह्म के समान हैं गुरु, बिना उनके जीवन में सुख-सफलता पाना है असंभव
Guru Purnima 2023: आषाढ़ शुक्ल की पूर्णिमा तिथि को व्यास पूजन अथवा गुरु पूजन किया जाता है. इस दिन को गुरु पूर्णिमा के तौर पर भी मनाया जाता है. इस बार यह तिथि आज यानी की 3 जुलाई को मनाई जा रही है. इस दिन पारम्परिक रूप से गुरु का पूजन करने का विधान है.
Guru Purnima Importance: गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवो महेश्वरः
गुरुःसाक्षात् परम ब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः।।
यह श्लोक इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है हमारी प्राचीन गुरुकुल परम्परा, गुरुकुल संस्कृति ने महर्षि, तपस्वी, राष्ट्रभक्त, चक्रवर्ती सम्राट और जगद्गुरु तक के सुयोग्य महापुरुष उपलब्ध कराए हैं. गुरु की शिक्षा के कारण ही श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम और श्री कृष्ण योगेश्वर बन सके. श्री राम ने गुरु महिमा को सर्वोपरि माना है. जनकपुरी में ऋषि विश्वामित्र की सेवा इसका प्रमाण है.
तेइ दोउ बंधु प्रेम जनु जीते ।
गुर पद कमल पलोटत प्रीते ।।
राम चरित मानस के आरंभ में भी सर्वप्रथम गुरु वंदना को ही प्रधानता दी गई है.
श्रीगुर पद नख मनि गन जोती ।
सुमिरत दिब्य दृष्टि हियँ होती ।।
अर्थात् श्री गुरु चरण के स्मरण मात्र से ही आत्मज्योति का विकास हो जाता है. भारतीय संस्कृति में गुरु पद को सर्वोपरि माना गया है. जीव को ईश्वर की अनुभूति और साक्षात्कार कराने वाली मान प्रतिमा गुरु ही हैं. इस कारण गुरु का साक्षात् त्रिदेव तुल्य स्वीकार किया है.
सभी तरह के धार्मिक संप्रदाय गुरु पद की महिमा को स्वीकार करते हैं. गुरु के निर्देशन की अवज्ञा करने वाले के लिए जीवन में सुख और सफलता प्राप्त करना असंभव माना गया है.
गुर कें बचन प्रतीति न जेही ।
सपनेहुँ सुगम न सुख सिधि तेही ।।
भारतीय संस्कृति में गुरु आश्रय रहित व्यक्ति को अत्यंत हेय माना गया है. वर्तमान समय में भौतिकवादी जन समुदाय में गुरु के प्रति आस्था का प्रायः अभाव सा होता जा रहा है. विशेष कर युवा वर्ग, जिसके परिणाम स्वरूप जीवन में अशांति, असुरक्षा और मानवीय गुणों का अभाव हो रहा है. हमारे देश के ऋषि-महर्षि, तीर्थंकर और महात्मा गौतम बुद्ध, महावीर जैसी दिव्य विभूतियों ने गुरु पद से अपने उपदेशों से उदार भावना स्थापित की.
गुर बिनु भव निधि तरइ न कोई ।
जौं बिरंचि संकर सम होई ।।
साधक को जीवन की सार्थकता के लिए योग्य गुरु की कृपा प्राप्त करना अतिआवश्यक होता है. गुरु प्राप्ति के लिए एकलव्य के समान अपार श्रद्धा और विश्वास की आवश्यकता है. गुरु पूर्णिमा को अपने गुरु का पूजन, वंदन और सम्मान करना चाहिए.