Hindu Important Fast: हिंदू धर्म और परंपराओं में कई प्रकार के व्रत का उल्लेख मिलता है. वर्ष के 365 दिनों में लगभग 200 से अधिक व्रतों का विधि-विधान और महत्व को बतलाया गया है. मनुष्य जन्म में जन्मा व्यक्ति कई तरह के पाप जाने व अनजाने में करता है. इन पापों से मुक्ति पाने के लिए व देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए ये व्रत किए जाते हैं. कुछ व्रत तो पुत्र व पति की लम्बी आयु के लिए महिलाएं रहती हैं. मास, दिन व तिथि के अनुसार भी व्रतों को करने से उत्तम फल मिलता है. इन्ही में से तिथि के व्रत व उनके महत्व और विधि को जानेंगे कि यह व्रत करने से किस प्रकार का पुण्य प्राप्त होता है.


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चतुर्थी व्रत  


प्रत्येक कृष्ण और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी व्रत रखा जाता है. यह व्रत माह में दो बार आता है. संकष्टी और वैनायकी चतुर्थी. चन्द्रोदय होने के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर भगवान गणेश का पूजन आदि करने के पश्चात ही भोजन ग्रहण करना चाहिए. विशेष कामना को लेकर व्रत किया जा रहा है तो 5, 7, 11, और 21 चतुर्थी व्रत का संकल्प करना चाहिए. 


पंचमी व्रत 


प्रत्येक माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी को मां लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए यह व्रत रखा जाता है. चैत्र, भाद्रपद, आश्विन अथवा कार्तिक माह की शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि से यह व्रत प्रारंभ करना शुभ माना जाता है. पूजन में धान्य, हल्दी, अदरक और गन्ना मां लक्ष्मी को अर्पित करें और सफेद पुष्प की माला से उन्हें सुसज्जित करें. व्रत की कथा के साथ मां लक्ष्मी का मंत्र जरूर जप करें. इस व्रत को करने से मां लक्ष्मी आपसे कभी रुष्ठ नहीं होती है..


सप्तमी व्रत


प्रत्येक माह की शुक्ल सप्तमी को व्रत करना चाहिए. इस व्रत को चैत्र मास की शुक्ल सप्तमी से प्रारंभ करना शुभकारी होता है. प्रसाद के रूप में गुड़ और गेहूं भगवान सूर्य को अर्पित करना चाहिए. जो दंपत्ति संतान प्राप्ति की इच्छा रखते हैं, उनके लिए यह व्रत विशेष है.


अष्टमी व्रत 


प्रत्येक माह की शुक्ल अष्टमी को मां दुर्गा और कुलदेवी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए अष्टमी व्रत रखने का प्राव्धान है. यह व्रत चैत्र और आश्विन मास की अष्टमी तिथि से आरंभ करना चाहिए. व्रत के दिन गेहूं और आटे से बना कोई भी प्रसाद माता को भोग के रूप लगा सकते हैं. मां को लाल वस्त्र और लाल रंग के पुष्प अर्पण करने चाहिए. शत्रु पीड़ा शांति, जीवन में आने वाली समस्याओं के नाश और आर्थिक समृद्धि के लिए यह व्रत रखा जाता है. 


एकादशी व्रत


यह व्रत प्रत्येक माह की कृष्ण और शुक्ल दोनों की एकादशी तिथि को किया जाता है. जो लोग एकादशी व्रत का प्रारंभ करना चाहते हैं, उन्हें देवशयनी तथा देवउठनी अथवा निर्जला एकादशी से व्रत का प्रारंभ करना चाहिए. जो लोग यह व्रत नहीं कर पाते हैं, उन्हें वर्ष में एक बार निर्जला एकादशी का व्रत अवश्य रखना चाहिए. इस व्रत को करने से मनुष्य के पाप कर्म नष्ट होते हैं और मृत्यु के पश्चात का जीवन सफल होता है. इस व्रत में अन्न ग्रहण नहीं करते हैं और चावल ग्रहण करना निषेध होता है. 


प्रदोष व्रत


यह व्रत प्रत्येक माह की सूर्यास्त के समय आने वाली त्रयोदशी तिथि को शुक्ल तथा कृष्ण पक्ष से प्रारंभ किया जा सकता है. त्रयोदशी तिथि पर भगवान शिव का पूजन, अभिषेक, उनके मंत्रों का जाप और स्तोत्र का पाठ करना श्रेष्ठतम होता है. जो लोग भगवान शिव की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं उन्हें कम से कम 7 प्रदोष व्रत का संकल्प लेकर व्रत का प्रारंभ करना चाहिए. 


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