Aarti karne ke Niyam: प्रत्येक हिंदू घर में पूजा-पाठ के बाद आरती करने का प्रावधान है. सवाल पैदा होता है कि आरती की ही क्यों जाती है. घी के दीपक से आरती करने के साथ ही घंटी, शंख आदि का वादन भी किया जाता है. आरती के महत्व को विज्ञान सम्मत माना जाता है. आरती से व्यक्ति की भावनाएं तो पवित्र होती ही हैं, साथ ही आरती के दीए में जलने वाला गाय का घी तथा आरती के समय बजने वाला शंख वातावरण के हानिकारक कीटाणुओं को निर्मूल करता है.


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आरती को आरात्रिक या नीराजन के नाम से भी संबोधित किया जाता है. आराध्य का पूजन करने में यदि कोई कमी रह जाती है या कोई भूल-चूक हो जाती है तो उसकी पूर्ति आरती करने से हो जाती है.  


मंत्रहीनं क्रियाहीनं यत् कृतं पूजनं हरेः, सर्व सम्पूर्णतामेति कृते नीराजने शिवे 


अर्थात हे शिव, भगवान का मंत्र रहित एवं क्रिया अर्थात आवश्यक विधि-विधान रहित पूजन होने पर भी आरती कर लेने से उसमें पूर्णता आ जाती है.


साधारणतया: पांच बाती वाले दीप से आरती की जाती है तो उसे पंचदीप कहा जाता है, किंतु सामान्य तौर पर घरों में प्रतिदिन की आरती में एक बाती का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. वैसे एक पाच-सात अथवा कोई भी विषम संख्या में अधिक दीप जलाकर आरती करने का विधान है. 


आरती में ईष्ट आराध्य के गुण कीर्तन के अलावा उनका मंत्र भी शामिल किया जाता है. भक्त मुख से तो भगवान की आरती के माध्यम से गुणगान करता है और हाथ में लिए हुए दीपक से उनके मंत्र के अनुरूप आरती घुमाता जाता है. प्रत्येक देवता का अपना विशिष्य मंत्र होता है, जिसके अनुसार उनका आह्वान किया जाता है. आरती करने वाले भक्त को इस प्रकार से आरती घुमाना चाहिए कि उससे ईष्ट देव का मंत्र बन जाए.