Negative Effects of Planets: किसी भी मजबूत इमारत को बनाने के लिए उसकी नींव भी उतनी ही मजबूत बनानी होती है. नींव जितनी मजबूत और गहरी होगी, उतना ही भव्य मकान बन सकेगा. कुंडली के अनुसार लग्न और उसके स्वामी की स्थिति के अनुसार ही रोगों की स्थिति तय होती है. यदि आप लग्न और उसके स्वामी को थोड़ा मजबूत कर दें तो फिर आपको कोई भी रोग आसानी से नहीं हो सकता है. 


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किसी भी व्यक्ति की जन्म पत्रिका में छठा भाव रोग का होता है. बारहवां भाव रोग को बढ़ाने या मृत्यु तुल्य कष्ट देने में सहयोगी होता है. जन्मपत्री का आठवां भाव भी मृत्युकारक होता है. इस तरह लग्न स्वामी का रोग मुक्ति में अहम रोल होता है. 


लग्न स्वामी यदि तीसरे स्थान पर हो तो कान के रोग हो जाते हैं. लग्न स्वामी के छठवें स्थान पर होने की स्थिति में व्यक्ति सूखा सा दिखता है, लेकिन यदि यही स्वामी आठवें स्थान पर हो तो उस व्यक्ति की आयु काफी लंबी हो सकती है. बारहवें भाव में लग्न स्वामी के होने से अच्छी सेहत नहीं रहती है. जब लग्नेश स्वामी, गोचर में अस्त हो, नीच राशि में हो, छठे, आठवें या बारहवें स्थान पर हो तो रोग लग जाता है या फिर कमजोर लग्न स्वामी की दशा दूसरे ग्रहों की महादशा में अंतर्दशा लग जाए तो रोग होने की आशंका रहती है, इसलिए जब भी ऐसी स्थिति आ जाए तो जरा परहेज से रहना शुरू कर देना चाहिए.


रोग लगने का इंतजार नहीं करना चाहिए. रोग होगा तो इलाज करा लेंगे. अपने लग्न स्वामी की स्थिति को देखकर उसे मजबूत अवश्य करें. यदि वह पहले से ही कमजोर हो तो किसी जानकार ज्योतिषी से पूछकर लग्न स्वामी को मजबूत करने वाला रत्न धारण कर सकते हैं. यदि आपने अपने लग्न स्वामी को बलवान बना लिया तो समझ लें कि आपने अपने स्वास्थ्य की कुंजी प्राप्त कर ली है.