Angad Story in Ramayana: जानकी जी की खोज करने से लेकर लंका पर विजय प्राप्त करने तक प्रभु श्री राम का सहयोग करने वालों में नर, नारी, वानर, रीछ, राक्षस आदि पशु-पक्षी सभी शामिल थे. वे सब प्रभु की सेवा कर अपने को धन्य करना चाहते थे. इन्हीं में से एक थे युवराज अंगद जिनके पिता वानरराज बालि का संहार भी श्री राम ने किया था. सच तो यह है कि बालि ने मरते समय अपने पुत्र अंगद को उनके चरणों में अर्पित करते हुए कहा,


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यह तनय मम सम बिनय बल कल्यानप्रद प्रभु लीजिए ।
गहि बांह सुर नर नाह आपन दास अंगद कीजिए ।।


प्रभु ने अंगद को बनाया था अपना दूत 


प्रभु श्री राम ने अंगद को स्वीकार कर किष्किन्धा का युवराज घोषित किया तो अंगद ने भगवान की इस कृपा को हृदय से ग्रहण किया. जब हनुमान जी यह पता लगाकर आए कि जानकी जी लंका में हैं तो समुद्र पर पुल बना कर वानर सेना लंका के त्रिकूट पर्वत पर उतरी और प्रभु ने अंगद को ही दूत बना कर भेजा. अंगद जानते थे कि हनुमान जी रावण को समझा चुके हैं किंतु वह अहंकारी है, दूसरों की बात मानना नहीं चाहता है और प्रलोभन का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है. अंगद यह भी जानते थे कि रावण के न मानने पर उसके साहस को तोड़ना, अनुचरों को भयभीत करना आने वाले युद्ध के लिए आवश्यक है. इसके बाद रावण की सभा में पहुंच कर अंगद ने प्रतिज्ञा की.


तोड़ दिया था रावण का अहंकार 


रावण नीतिज्ञ था. उसने अंगद से कहा कि तुम्हारे पिता बालि मेरे मित्र थे, तुम जिसका साथ दे रहे हो वह तो तुम्हारे पिता का हत्यारा है. अपने प्रभु की निंदा सुनकर अंगद क्रोध में आ गए और उन्‍होंने अपनी दोनों मुट्ठी बंद करके जोर से जमीन पर मारीं तो भूमि हिल गई. रावण गिरते-गिरते बचा, उसके 10 सिरों पर लगे मुकुट धरती पर गिर गए. यहां तक कि उनमें से 4 मुकुट उछालकर प्रभु श्रीराम के पास भेज दिए. यह सब देखकर रावण हैरान रह गया. इतना ही नहीं रावण के दरबार का कोई भी शूरवीर उनका एक पैर तक नहीं हिला पाया था. 


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अपनी शक्ति का नहीं किया कभी घमंड


इतना शौर्य दिखाने के बाद जब अंगद लौटे तो प्रभु ने उनसे सारा किस्सा पूछा कि किस तरह तुमने चार मुकुट मेरे पास भेज दिए तो अंगद ने बहुत सी सरलता से जवाब दिया, मैने तो कुछ किया ही नहीं, सब आपकी कृपा से संभव हुआ.  इसके बाद भयंकर युद्ध हुआ जिसमें अंगद ने कई मायावी और बलशाली राक्षसों का वध किया. इसके सब माता जानकी के साथ अयोध्या पहुंचे और प्रभु श्री राम का राज्याभिषेक हुआ. सभी कपियों को अंगवस्त्र देकर राजा श्री रामचन्द्र ने विदा किया. 


इस दृश्य को देख अंगद जी छिप गए कि कहीं उन्हें भी विदा न कर दिया जाए. अंत में प्रभु की दृष्टि अंगद पर गई तो अंगद जी कांप रहे थे, नेत्रों से आंसुओं की धारा निकल रही थी, वे हाथ जोड़ कर खड़े होकर बोले, नाथ मेरे पिता ने मरते समय मुझे आपके चरणों में ड़ाला था, अब आप मेरा त्याग न करें, इतनी कहकर अंगद उनके चरणों में गिर पड़े तो प्रभु ने उन्हें उठा कर हृदय से लगाया, इसके बाद उन्हें अपने निजी वस्त्र, अपने गले की माला पहना कर समझा-बुझा कर विदा किया. 


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)