नई दिल्‍ली: पूरी दुनिया को प्रेम का महत्‍व समझाने और धर्म की स्‍थापना करने के लिए तकरीबन 5 हजार साल पहले धरती पर जन्‍म लेने वाले भगवान श्रीकृष्‍ण (Lord Shrikrishna) के जन्‍मोत्‍सव का पर्व 30 अगस्त को मनाया जाएगा. भगवान विष्‍णु के 8वें अवतार श्रीकृष्‍ण ने द्वापर युग में भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की अष्‍टमी को जन्‍म लिया था, जिसे जन्माष्टमी (Janmashtami 2021) कहा जाता है. भगवान ने जन्‍म के लिए जिस नक्षत्र, समय और दिन को चुना था, वह कई मायनों में खास है. साथ ही इसका संबंधों उनके पूर्वजों से जुड़ा हुआ है. 


श्रीकृष्‍ण के पूर्वज हैं चंद्रदेव 


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धर्म-पुराणों के अनुसार भगवान श्रीकृष्‍ण चंद्रवंशी थे. उनके पूर्वज चंद्रदेव (Chandra Dev) थे, जो कि बुध के बेटे हैं. इसी के चलते भगवान श्रीकृष्‍ण ने अपने जन्‍म (Birth) के लिए बुधवार का दिन और नक्षत्र रोहिणी चुना था. चूंकि चंद्रमा को अपनी पत्‍नी रोहिणी सबसे ज्‍यादा प्रिय थीं, इसलिए श्रीकृष्‍ण ने रोहिणी नक्षत्र (Rohini Nakshatra) को चुना. इतना ही नहीं चंद्रदेव की इच्‍छा थी कि भगवान विष्‍णु उनके कुल में जन्‍म लें, उनकी यह इच्‍छा पूरी करते हुए भगवान ने उनके कुल में जन्‍म लिया और कई बुरी शक्तियों का नाश करके महाभारत के जरिए धर्म की स्‍थापना की. 


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आधी रात को जन्‍म लेने की वजह 


भगवान श्रीकृष्‍ण के आधी रात को जन्‍म लेने के पीछे भी खास वजह थी. श्रीकृष्‍ण के मामा कंश ने अपनी अकाल मृत्‍यु को टालने के लिए अपनी बहन के सभी बच्‍चों की हत्‍या करने का संकल्‍प लिया था. उस अत्‍याचारी का वध भी भगवान के हाथों होना था. भगवान ने आधी रात (Midnight) में जन्‍म लेकर अपने माता-पिता को समय दिया था कि वे नन्‍हे बालक को सुरक्षित स्‍थान पर भेज सकें. पुराणों के मुताबिक कृष्णावतार के समय उस कारागार के द्वार अपने आप खुल गए थे, जिसमें भगवान के माता-पिता कैद थे. साथ ही धरती से लेकर इंद्रलोक तक हर्ष का वातावरण हो गया था. देवताओं ने उनके जन्‍म पर स्‍वर्ग से फूल बरसाए थे. 


(नोट: इस लेख में दी गई सूचनाएं सामान्य जानकारी और मान्यताओं पर आधारित हैं. Zee News इनकी पुष्टि नहीं करता है.)