Pilot Baba: पायलट बाबा जो महाभारत के `अश्वत्थामा` से मिले! 110 बार ली समाधि
Pilot Baba Sasaram: पायलट बाबा का असली नाम कपिल सिंह था. वह भारतीय वायुसेना में फाइटर पायलट थे. 1965 और 1971 की जंग लड़ी थी. जब उन्होंने संन्यास लिया उससे पहले वो विंग कमांडर थे. इसलिए ही बाद में वो पायलट बाबा कहलाए.
Pilot Baba History: जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर और आध्यात्मिक गुरु पायलट बाबा ने 86 वर्ष की आयु में देह त्याग दिया है. उनकी अंतिम इच्छा के अनुरूप हरिद्वार में उनको समाधि दी जाएगी. पायलट बाबा का असली नाम कपिल सिंह था. वह भारतीय वायुसेना में फाइटर पायलट थे. 1965 और 1971 की जंग लड़ी थी. जब उन्होंने संन्यास लिया उससे पहले वो विंग कमांडर थे. इसलिए ही बाद में वो पायलट बाबा कहलाए.
संन्यास ग्रहण करने के बाद उन्होंने 16 वर्षों तक हिमालय में तपस्या की. अपनी किताबों Unveils mystery of Himalaya (Part 1) और Discover secret of the Himalaya (Part 2) में उन्होंने अपने अनुभवों को पिरोया. इनमें उन्होंने दावा कि वो महाभारत कालीन अश्वत्थामा से मिले. अश्वत्थामा के बारे में कहा जाता है कि महाभारत में भगवान कृष्ण ने उनको श्राप दे दिया था कि वो कलियुग के समाप्त होने तक नहीं मरेंगे. तब से ही उनको चिंरजीवी माना जाता है.
पायलट बाबा ने इसी तरह महावतार बाबाजी, कृपाचार्य से मिलने का भी दावा किया. अपनी किताबों में उन्होंने समाधि के रहस्यों और विज्ञान के बारे में भी बताया. उनका दावा था कि उन्होंने 110 बार समाधि ली.
कपिल सिंह कैसे बने पायलट बाबा
1996 में एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने अपनी जिंदगी के टर्न लेने का किस्सा सुनाया. उन्होंने बताया था कि एक बार जब वह नॉर्थ-ईस्ट में मिग एयरक्राफ्ट के साथ उड़ान भर रहे थे तो उनके फाइटर प्लेन में तकनीकी बाधा उत्पन्न हो गई और वो उनके कंट्रोल से बाहर हो गया. उन्होंने कुछ ही पलों में अपने जिंदा रहने की आशा खो दी और अपने आध्यात्मिक गुरु हरि बाबा का स्मरण किया. उन्होंने महसूस किया कि उनके गुरु कॉकपिट में मौजूद हैं और सेफ लैंडिंग के लिए गाइड कर रहे हैं. प्लेन ने सुरक्षित लैंडिंग की और वो सकुशल बाहर आए. इस चमत्कारिक घटना के बाद उनको वैराग्य प्राप्त हुआ. उन्होंने 33 साल की उम्र में वायुसेना से रिटायरमेंट लिया और संन्यास ले लिया.
पायलट बाबा का जन्म बिहार के सासाराम में हुआ था. उन्होंने बीएचयू से एमएससी की थी. 1957 में उनको फाइटर पायलट के रूप में वायुसेना से कमीशन मिला. उन्होंने 1962 में भारत-चीन युद्ध में हिस्सा लिया. 1965 और 1971 में पाकिस्तान के साथ जंग में हिस्सा लिया. वायुसेना में उनकी उल्लेखनीय उपलब्धियों के लिए शौर्य चक्र, वीर चक्र और विशिष्ट सेवा मेडल से सम्मानित किया गया.
समाधि की बात
पायलट बाबा ने दावा किया कि उन्होंने 1976 में पहली बार समाधि ली. उसके बाद पूरे जीवन में उन्होंने करीब 110 बार समाधि ली. कई बार ऐसा भी हुआ कि लोगों को लगा कि समाधि के बाद अब वो वापस नहीं लौटेंगे लेकिन वो वापस आ गए. उनकी ये बात लोगों के बीच गहरे आकर्षण का कारण भी रही. उन्होंने इसके विज्ञान और रहस्यों के बारे में बताया था कि इसे हर कोई नहीं कर सकता. इसके लिए शरीर में संतुलन और धैर्य का संगम होना चाहिए. समाधि की अवस्था को वो मृत्यु से पार जाने वाली बात कहते थे. समाधि की अवस्था में व्यक्ति बाहरी दुनिया से पूरी तरह से अलग हो जाता है और अपने भीतर की तरफ ध्यान केंद्रित करता है.