Jwala Devi Temple History: हिमाचल प्रदेश को ज्‍वाला देवी मंदिर बेहद प्रसिद्ध है. यह माता का शक्तिपीठ है, जो कि कांगड़ा घाटी में स्थित है. इस मंदिर को ज्वालाजी मंदिर या ज्वालामुखी देवी मंदिर भी कहते हैं. कांगड़ा की घाटियों में ज्वाला देवी मंदिर की नौ अनन्त ज्वालाएं जलती हैं, जिनके दर्शन करने के लिए देश के कोने-कोने से हिंदू तीर्थयात्री आते हैं. इस अद्भुत और चमत्‍कारिक मंदिर में देवी की मूर्ति नहीं है, बल्कि दिन-रात बिना किसी ईंधन के जल रही ज्‍वालाओं की ही पूजा की जाती है. मान्‍यता है कि इन ज्‍योतियों के दर्शन करने से मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. इन अग्नि ज्‍योतियों या ज्‍वालाओं को साक्षात मां का स्वरूप माना गया है जो पानी में भी नहीं बुझती हैं. माना जाता है कि ये ज्वालाएं कालांतर से लगातार जल रही हैं. इस मंदिर की महिमा ऐसी है कि महान मुगल बादशाह अकबर भी इस मंदिर में आकर नतमस्‍तक हो गया था. 


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माता का शक्तिपीठ है ज्‍वाला देवी मंदिर 


ज्‍वाला देवी मंदिर माता के 51 शक्तिपीठों में से एक और बेहद अहम है. शास्‍त्रों के अनुसार ज्वालामुखी मंदिर में माता सती की जिव्हा गिरी थी. जिव्हा में ही अग्नि तत्व बताया गया है, जिससे यहां पर बिना तेल, घी के दिव्य ज्योतियां जलती रहती हैं. 


अकबर ने ली माता के भक्‍त की परीक्षा 


ज्‍वाला देवी मंदिर से जुड़ी एक और कथा बेहद मशहूर है कि एक बार मुगल बादशाह अकबर ने मां ज्वालाजी के अनन्य भक्‍त ध्यानू की श्रद्धा व आस्था की परीक्षा लेने की कोशिश की और मुंह की खानी पड़ी. दरअसल, ध्यानू माता के दरबार में शीश नवाने के लिए अपने साथियों के साथ आगरा से ज्वाला देवी मंदिर जा रहे थे, तो अकबर ने बिना तेल घी के जल रही ज्योतियों को पाखंड बताया. साथ ही शर्त रख दी कि यदि माता सच्‍ची हैं तो ध्यानू के घोड़े का सिर धड़ से अलग कर दिया जाए तो ध्यानू की आराध्य मां इसे पुनः लगा देंगी. 


पानी में भी जलती रहीं ज्‍योतियां 


तब ध्यानू भक्‍त ने पूरे समर्पण से हामी भरी और अकबर ने ध्‍यानू के घोड़े का सिर कलम करवा दिया. इसके बाद चमत्‍कार हुआ और ज्वालाजी की शक्ति से घोड़े का सिर पुनः लग गया. इसके बाद भी अकबर नहीं माना और उसने ज्‍वाला देवी मंदिर की ज्‍वालाओं को बुझाने के लिए ज्‍योतियों के स्‍थान पर लोहे के कड़े लगवा दिए. साथ ही नहर का पानी भी ज्योतियों पर डाला गया लेकिन माता के चमत्कार से पानी पर भी पवित्र ज्योतियां जल उठी थीं.


नतमस्‍तक हो गया अकबर 


जब बादशाह अकबर ज्‍वालाजी की पवित्र ज्‍योतियां बुझाने में नाकाम रहा तो वह देवी मां की शक्ति के आगे नतमस्तक हो गया. इसके बाद वह ज्‍वाला देवी मंदिर में नंगे पांव गया और सवा मन सोने का छत्र माता के श्री चरणों में अर्पण किया. 


(Dislaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)