Kamdev and Brahma ji Story: श्री रघुनाथ जी के कहने पर पार्वती जी के बारे में सप्तऋषियों से जानकारी करने के बाद शिवजी समाधि में लीन हो गए. तब ब्रह्मा जी ने देवताओं से कहा तुम सब कामदेव को शिवजी के पास भेजकर उनकी समाधि भंग कराओ. वह जैसे ही समाधि छोड़ेंगे, हम खुद ही उनके चरणों में सिर रखकर पार्वती के साथ विवाह करने के लिए राजी करा लेंगे. उनकी यह राय सभी देवताओं को अच्छी लगी तो देवताओं के प्रार्थना करने पर कामदेव सामने आए और उन्हें पूरी बात बताते हुए कहा कि तारक नाम के असुर का वध शिव और पार्वती के संयोग से जन्मी संतान ही कर सकेगी. 


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इसके बाद कामदेव ने अपनी काम वासना का ऐसा विस्तार किया कि इस संसार में जिसे देखो वह अपने जरूरी काम छोड़कर काम वासना के अधीन हो गया. रामचरित मानस के बालकांड में तुलसीदास जी लिखते हैं कि कामदेव के प्रभाव में आकर देव, दैत्य, मनुष्य, किन्नर, सर्प, प्रेत, पिशाच, भूत, बेताल सभी काम के सामने अंधे से हो गए. यहां तक कि सिद्ध, विरक्त, महामुनि और महान योगी भी उसके प्रभाव से नहीं बचे. 


कामदेव शिवजी के पास तो गया, किंतु उन्हें देखकर वह भी डर गया. कामदेव ने बहुत तीखे पांच वाण छोड़े जो सीधे शिवजी के हृदय में लगे और उनकी समाधि टूट गई और वह जाग गए. उन्हें मन ही मन गहरा दुख हुआ और आंखें खोलकर सब ओर देखा. उन्होंने जैसे ही सामने आम के पत्तों में छिपे हुए कामदेव को देखा तो बहुत ही क्रोध आया. शिव जी ने अपना तीसरा नेत्र खोला तो वहां से भयंकर ज्वाला निकली और देखते ही देखते कामदेव उसमें जलकर भस्म हो गए. इस स्थिति से जगत में हाहाकार मच गया, देवता डर गए और दैत्य प्रसन्न हो उठे. 


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