नई दिल्ली: 13 अप्रैल मंगलवार से चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri) की शुरुआत हुई है और देशभर के देवी मंदिरों में कलश स्थापना करके हर दिन मां दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा की जा रही है. शक्ति के उपासना के पर्व नवरात्रि के अवसर पर हम आपको माता रानी के एक ऐसे मंदिर (Devi temple) के बारे में बताने जा रहे हैं जहां सैकड़ों नहीं बल्कि हजारों चूहे हैं जो किसी सेना की तरह माता की रक्षा करते हैं. ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में आने पर भक्तों की हर मुराद पूरी होती है.


करणी माता के मंदिर में हैं हजारों चूहे


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हम बात कर रहे हैं चूहों वाले मंदिर (Rat temple) के नाम से प्रसिद्ध करणी माता मंदिर (Karni mata temple) की जो राजस्थान के बीकानेर शहर से करीब 30 किलोमीटर दूर देशनोक में है. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इस मंदिर में चूहों का जूठा किया हुआ प्रसाद ही भक्तों को दिया जाता है, लेकिन इस प्रसाद को खाने से कभी कोई भक्त बीमार नहीं होता. 20-25 हजार चूहे (Thousands of rats) होने के बावजूद न तो इस मंदिर में न तो कोई बदबू आती है और ना ही कोई बीमारी फैलती है. 


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सफेद चूहे दिखने पर पूरी होती है मनोकामना


इस मंदिर के चूहों को काबा (Rats are called kaba) कहा जाता है और मंदिर में आने वाले श्रद्धालु मंदिर के अंदर पैर घसीटकर चलते हैं ताकि कोई काबा उनके पैर के नीचे न आ जाए क्योंकि ऐसा होना अशुभ माना जाता है. मंदिर में काले रंग के चूहों के साथ ही सफेद रंग के भी चूहे हैं लेकिन इनकी संख्या काफी कम है. ऐसा माना जाता है कि यहां आने वाले जिस श्रद्धालु को सफेद चूहे (White rats) दिख जाएं, इसका मतलब है कि उसकी हर मनोकामना पूरी होने वाली है. मंदिर में नवरात्रि के दौरान अच्छी खासी भीड़ होती है. 


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कैसे साधारण स्त्री से देवी बनीं करणी माता


इस मंदिर में मौजूद देवी करणी माता को जगदम्बा यानी मां दुर्गा का अवतार माना जाता है. लोक कथाओं की मानें तो करणी माता का जन्म 1387 में एक चारण परिवार में हुआ था और उनके बचपन का नाम रिघुबाई था. उनका विवाह किपोजी चारण से हुआ, लेकिन सांसरिक जीवन से मन ऊबने के बाद उन्होंने किपोजी चारण की शादी अपनी छोटी बहन गुलाब से करवा दी और खुद माता की भक्ति और लोगों की सेवा में लग गईं. लोगों की मदद और चमत्कारिक शक्तियों के कारण स्‍थानीय लोग उन्हें करणी माता के नाम से पूजने लगे. मौजूदा समय में जहां मंदिर है, वहां एक गुफा में करणी माता अपनी इष्ट देवी की पूजा करती थीं. उनके ज्योतिर्लीन होने के बाद भक्तों ने वहां पर उनकी मूर्ति की स्‍थापना की और पूजा शुरू कर दी.


(नोट: इस लेख में दी गई सूचनाएं सामान्य जानकारी और मान्यताओं पर आधारित हैं. Zee News इनकी पुष्टि नहीं करता है.)


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