Dev Deepawali Ki Katha: हिंदू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का पर्व बहुत ही धूमधाम से उत्सव के रूप में मनाया जाता है. इस बार यह पर्व 27 नवंबर को मनाया जाएगा. त्रिपुर राक्षस के वध पर देवताओं ने इस दिन संध्या के समय दीपावली की तरह ही दीप जलाए थे इसीलिए इसे देव दीपावली भी कहा जाता है. इस दिन क्षीरसागर दान का अत्यंत महत्व है. क्षीरसागर के दान के लिए 24 अंगुल गहरे बर्तन में दूध भर कर उसमें सोने या चांदी की मछली छोड़ कर किया जाता है. 


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कार्तिक पूर्णिमा की कथा 
एक बार त्रिपुर नाम के राक्षस ने एक लाख वर्षों तक पुण्य नगर प्रयागराज में कठोर तपस्या की. उसकी इस घोर तपस्या को देख कर जड़ चेतन देवता आदि सभी भयभीत हो गए. देवताओं को लगा कि इतना घोर तप कर वह महाबलशाली हो जाएगा इसलिए उसका तप भंग करने के लिए अप्सराओं को भेजा किंतु त्रिपुर राक्षस तप में इतना लीन था कि अप्सराएं भी उसको तप से नहीं रोक सकीं. वह निराश हो कर लौट गईं. उसके तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी वहां पहुंचे और त्रिपुर से वर मांगने को कहा. त्रिपुर बोला कि उसे ऐसा वरदान दें कि वह न किसी देवता और न ही मनुष्यों के प्रयास से मर सके. ब्रह्मा जी वरदान दे चुके थे तो उन्होंने तथास्तु कह दिया. इसके बाद तो उसे संसार में उत्पात मचाना शुरु कर दिया. जीव जंतु और ऋषि मुनि सब उसके आतंक से भयभीत हो गए. इतना ही नहीं उसने कैलास पर जाकर चढ़ाई कर दी. महादेव को उसने युद्ध के लिए ललकारा, दोनों के बीच घमासान युद्ध छिड़ गया, लंबे समय तक युद्ध चलता रहा तभी ब्रह्मा जी और विष्णु जी महादेव की तरफ पहुंचे तो दोनों की सहायता से महादेव ने उसका संहार किया. वह कार्तिक माह की पूर्णिमा की तिथि थी, इसीलिए कार्तिक मास की पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहते हैं. 


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्‍य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)