Karwa Chauth Katha: मान्‍यता के मुताबिक, सबसे पहले इस व्रत को शक्ति स्‍वरूपा देवी पार्वती ने भोलेनाथ के लिए किया था. इसी व्रत से उन्‍हें अखंड सौभाग्‍य की प्राप्ति भी हुई थी. इसलिए सुहागिनें अपने पतियों की लंबी उम्र की कामना के लिए ये व्रत रखती हैं और देवी पार्वती और भगवान शिव की पूजा करती हैं. इसके अलावा ये भी कथा है कि एक बार देवताओं और राक्षसों के बीच भयंकर युद्ध छिड़ा था. उस समय लाख उपायों के बावजूद भी देवताओं को सफलता नहीं मिल पा रही थी और राक्षस हावी हुए जा रहे थे. तभी ब्रह्मदेव ने सभी देवताओं की पत्नियों को करवा चौथ का व्रत करने को कहा. इसके अलावा महाभारत और कई अन्‍य धार्मिक ग्रंथों में भी इस बात का जिक्र मिलता है.    


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महाभारत में है करवा का प्रसंग


महाभारत काल की कथा के मुताबिक, एक बार अर्जुन नीलगिरी पर्वत पर तपस्‍या करने गए थे. उसी समय पांडवों पर कई तरह के संकट आ गए, तब द्रोपदी ने भगवान श्रीकृष्‍ण से पांडवों को संकट से बाहर निकालने का उपाय पूछा. उस समय श्रीकृष्‍ण ने बताया कि कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन करवा का व्रत करिए. इसके बाद द्रोपदी ने इस व्रत को किया और पांडवों को संकट से मुक्ति मिल गई.  


मगरमच्‍छ को मिला मृत्‍युदंड


एक कथा ये भी है कि प्राचीन समय में करवा नाम की एक पतिव्रता स्‍त्री हुआ करती थी. एक बार उसका पति नदी में स्‍नान कर रहा था, उसी समय एक मगर ने उसका पैर पकड़ लिया. उसके बाद उसने मदद के लिए करवा को आवाज दी, तब करवा ने अपनी सतीत्‍व के प्रताप से मगरमच्‍छ को कच्‍चे धागे से बांध लिया और यमराज के पास पहुंची. करवा ने यमराज से पति की जान बचाने और मगर को मृत्‍युदंड देने की प्रार्थना की. इसके बाद यमराज ने कहा कि मगरमच्छ की आयु अभी शेष है, समय से पहले उसे मृत्‍यु नहीं दी जा सकती. उस समय करवा ने यमराज से कहा कि अगर उन्‍होंने करवा के पति को चिरायु होने का वरदान नहीं दिया तो वह अपने तपोबल से उन्‍हें नष्‍ट होने का श्राप दे देगी. इसके बाद करवा के पति को जीवनदान मिल गया और मगरमच्‍छ को मृत्‍युदंड.   


वीरावती की कथा


मान्‍यता के मुताबिक, इन्द्रप्रस्थपुर वेद शर्मा ब्राह्मण की शादीशुदा पुत्री वीरावती ने करवा चौथ का व्रत किया था. नियमों के मुताबिक, उसे चंद्र उदय के बाद भोजन करना था, लेकिन वह भूख सहन नहीं कर पा रही थी. उसके भाई, बहन को इस तरह से देख नहीं पा रहे थे. इसलिए उन्‍होंने पीपल की आड़ में आतिशबाजी कर सुंदर प्रकाश फैलाकर चंद्रोदय दिखा दिया और उसी चक्‍कर में वीरावती ने भोजन कर लिया. इसके बाद वीरावती का पति तत्काल अदृश्य हो गया. इसके बाद वीरावती 12 महीने तक हर चतुर्थी पर व्रत रखती थी और करवा चौथ के दिन इस कठिन तपस्या की वजह से उसे उसका पति फिर से मिल गया. 


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