Amavasya: हिंदू पंचांग में तिथियों का बहुत ही अधिक महत्व है और इसी आधार पर ज्योतिषीय गणना होती है और पर्वों को मनाने के समय का निर्धारण होता है. प्रत्येक माह में दो पक्ष होते हैं जिन्हें कृष्ण और शुक्ल पक्ष के नाम से जाना जाता है. कृष्ण पक्ष की पूर्णता अमावस्या और पूर्णिमा के साथ शुक्ल पक्ष. मास का प्रारंभ कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से होता है और समापन पूर्णिमा के साथ होता है. वैदिक ज्योतिष के अनुसार अमावस्या के दिन चंद्रमा के दर्शन नहीं होते हैं और चंद्रमा मन का कारक ग्रह माना जाता है. इन दोनों पक्षों को मिलाकर एक चंद्र मास बनता है.


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साल में होती हैं 12 अमावस्या


इन 12 अमावस्याओं में से कुछ अमावस्या अत्यंत महत्वपूर्ण होती हैं. 
अमावस्या अगर सोमवार को होती है तो उसे सोमवती अमावस्या कहा जाता है.
मंगलवार को पड़ने वाली अमावस्या को भौमवती अमावस्या के नाम से जाना जाता है.
शनिवार को होने वाली अमावस्या को शनैश्चरी अमावस्या कहते हैं.
माघ मास की अमावस्या माघी अमावस्या कहा जाता है.
आश्विन मास में पड़ने वाली अमावस्या को सर्व पितृ अमावस्या कहा जाता है.
सावन मास की अमावस्या को हरियाली अमावस्या कहलाती है.
कार्तिक मास की अमावस्या सबसे अधिक महत्वपूर्ण होती है क्योंकि इस में दीपावली जैसा महापर्व होता है, इसे काली अमावस्या भी कहा जाता है. 
भाद्रपद मास की अमावस्या कुशग्रहणी अमावस्या कहलाती है. 


 


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क्या करें और क्या न करें
अमावस्या के दिन प्रातः गंगा या किसी अन्य पवित्र नदी में स्नान पूजा और दान का विशेष महत्व होता है. अमावस्या वाले दिन पितृ पूजन किया जाता है, और इसके लिए दोपहर का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है. इस दिन भोजन बनाने के बाद पितरों को भोग लगाने के बाद ब्राह्मणों को भोजन खिला दक्षिणा देकर विदा करना चाहिए. इस दिन कभी भी झाड़ू नहीं खरीदना चाहिए. ऐसा करने से धन की देवी लक्ष्मी जी अप्रसन्न होती हैं.


 


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)