नई दिल्ली: सनातन परंपरा में की जाने वाली विभिन्न पूजा सामग्री में दूर्वा (Durva) या फिर कहें दूब (Doob) को अत्यंत पवित्र माना गया है. दूर्वा को दूब, अमृता, अनंता, महौषधि आदि नामों से जाना जाता है. हमारे देश में ऐसा कोई मांगलिक कार्य नहीं है, जिसमें हल्दी और दूब की जरूरत न पड़ती हो. शादी-ब्याह जैसे शुभ कार्यों में जब दूर्वा की नोक से हल्दी छिड़की जाती है तो ऐसा लगता है कि मानो सौभाग्य छिड़का जा रहा हो. विघ्न विनाशक गणपति की पूजा में तो दूर्वा का विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है. आइए जानते हैं कि आखिर इस दूर्वा के जरिए कैसे सुख-समृद्धि और सौभाग्य की कामना पूरी होती है.


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समुद्र मंथन से जुड़ी है मंगलकारी दूर्वा की कथा
दूर्वा के बारे में मान्यता है कि समुद्र-मंथन के समय जब देवता अमृत कलश को राक्षसों से बचाकर ले जा रहे थे तो उसमें से कुछ बूंदें पृथ्वी पर उगी हुई दूर्वा यानी घास (Durva Grass) पर गिर गई थीं. यही कारण है कि बार-बार उखाड़े जाने के बाद भी दूर्वा पुनर्जीवित हो जाती है.


दूर्वा से गणपति दूर करेंगे दु:ख
पंचदेवों में से प्रथम पूजनीय गणपति (Ganapati) की साधना में दूर्वा का विशेष प्रयोग किया जाता है. मान्यता है कि यदि साधक गणपति की पूजा दूर्वा की कोपलों से करता है तो उसे कुबेर के समान धन की प्राप्ति होती है. सभी जगह आसानी से मिल जाने वाली इस दूर्वा को गणपति पर चढ़ाने से विशेष कृपा प्राप्त होती है. दूर्वा चढ़ाने से प्रसन्न होकर गणपति सभी कष्टों और विघ्न-बाधाओं को दूर करते हैं.


गणपति को दूर्वा चढ़ाने का मंत्र
गणपति को उनकी प्रिय दूर्वा चढ़ाने से साधक की साधना शीघ्र ही संपन्न होकर फलदायी होती है. बुधवार अथवा अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि, जिसे विनायक चतुर्थी कहते हैं, के दिन अपनी मनोकामना को गणपति के समक्ष रखने के बाद नीचे दिए गए मंत्र के साथ 21 दूर्वा की गांठ चढ़ाएं.
'श्री गणेशाय नमः दूर्वांकुरान् समर्पयामि।।'
ध्यान रहे कि 21 दूर्वा को इकट्ठा करके एक गांठ बनाई जाती है. दूर्वा को हमेशा गणपति के सिर पर चढ़ाएं. उसे भूलकर भी उनके पैरों में न चढ़ाएं.


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