नई दिल्ली: देशभर में भले ही होली का त्योहार (Holi Festival) भले ही 29 मार्च सोमवार को मनाया जाए लेकिन राधा-कृष्ण (Radha-Krishna) की भूमि मथुरा, वृंदावन, बरसाना, नंदगांव, गोकुल यानी पूरे ब्रज भूमि में तो रंग-गुलाल एक हफ्ते पहले से ही उड़ने शुरू हो गए हैं. सोमवार 22 मार्च को बरसाना के राधा रानी मंदिर में लड्डू की होली (Ladoo ki Holi) के साथ होली परंपरा की शुरुआत हो गई. और अब आज यानी 23 मार्च मंगलवार को बरसाना की रंगीली गलियों में लट्ठमार होली का त्योहार धूमधाम से मनाया जाएगा. 


हुरियारे और हुरियारन लाठी-डंडों संग खेलते हैं होली


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बरसाना की लट्ठमार होली (Lathmar Holi) भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर में काफी मशहूर है. फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को बरसाना (Barsana) में लट्ठमार होली खेली जाती है. इस दिन यहां का नजारा देखने लायक होता है. लोग यहां फूल, रंग और गुलाल के साथ ही लाठी-डंडों से भी होली खेलते नजर आते हैं. लट्ठमार होली खेलने वाले पुरुषों को हुरियारे और महिलाओं को हुरियारन कहा जाता है. नंदगांव के हुरियारे बरसाना में हुरियारनों संग लट्ठमार होली खेलने आते हैं. एक दिन लट्ठमार होली बरसाना में होती है और उसके अगले दिन नंदगांव (Nandgaon) में.


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कैसे शुरू हुई लट्ठमार होली की परंपरा?


लट्ठमार होली का संबंध भी राधा-कृष्ण के प्रेम से ही है. पौराणिक कथाओं और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बरसाना में राधा रानी का जन्म हुआ था. ऐसी मान्यता है कि जब राधा और कृष्ण की दोस्ती हो गई तो श्रीकृष्ण, राधा से मिलने अपने दोस्तों संग नंदगांव से बरसाना आते थे. इस दौरान भगवान कृष्ण, गोपियों संग खूब होली खेलते थे और उन्हें परेशान करते थे, जिसके बाद राधा और उनकी सहेलियां उन्हें लाठियों से मारती थीं. तभी से लट्ठमार होली खेलने की परंपरा चली आ रही है. 


होली के मौके पर हर साल बरसाना में लट्ठमार होली खेलने की परंपरा को निभाया जाता है. लाठी और डंडे की मार से बचने के लिए नंदगांव के हुरियारे अपने साथ ढाल लेकर आते हैं और बरसाने की हुरियारनों की लाठी से बचते नजर आते हैं. इस दौरान चारों तरफ लाठियों के साथ ही रंग गुलाल भी जमकर उड़ता है और त्योहार का मजा दोगुना हो जाता है. 


(नोट: इस लेख में दी गई सूचनाएं सामान्य जानकारी और मान्यताओं पर आधारित हैं. Zee News इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले किसी विशेषज्ञ से संपर्क करें)


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