lord Vishnu Aarti: हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी आज 17 जुलाई, बुधवार के दिन मनाई जा रही है. हिंदू शास्त्रों में इस तिथि का विशेष महत्व बताया जाता है. सनातन धर्म में एकादशी तिथि को बहुत पवित्र और पुण्यदायिनी माा गया है. इस दिन से चार माह के लिए भगवान विष्णु क्षीर सागर में वि विश्राम के लिए चले जाते हैं और कार्तिक माह की एकादशी के दिन जागते हैं. 


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देवशयनी एकादशी शुभ मुहूर्त 2024


हिंदू पंचांग के अनुसार देवशयनी एकादशी तिथि का आरंभ 16 जुलाई  रात 8 बजकर 33 मिनट से होगा और 17 जुलाई रात 9 बजकर 2 मिनट पर एकादशी तिथि का समापन होगा. उदयातिथि के मुताबिक इस बार देवशयनी एकादशी का व्रत 17 जुलाई 2024 को रखा जाएगा. बता दें कि देवशयनी एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि पर किया जाता है. इस बार पारण का समय 18 जुलाई सुबह 5  बजकर 35  मिनट से सुबह 8 बजकर 44 मिनट तक किया जा सकता है. 


भगवान विष्णु जी की आरती (Lord Vishnu Aarti)


ओम जय जगदीश हरे (Om Jai Jagdish Hare)


ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी ! जय जगदीश हरे।


भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥


ॐ जय जगदीश हरे।


जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का।


स्वामी दुःख विनसे मन का।


सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥


ॐ जय जगदीश हरे।


मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी।


स्वामी शरण गहूँ मैं किसकी।


तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी॥


ॐ जय जगदीश हरे।


तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।


स्वामी तुम अन्तर्यामी।


पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥


ॐ जय जगदीश हरे।


तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता।


स्वामी तुम पालन-कर्ता।


मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥


ॐ जय जगदीश हरे।


तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।


स्वामी सबके प्राणपति।


किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति॥


ॐ जय जगदीश हरे।


दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।


स्वामी तुम ठाकुर मेरे।


अपने हाथ उठा‌ओ, द्वार पड़ा तेरे॥


ॐ जय जगदीश हरे।


विषय-विकार मिटा‌ओ, पाप हरो देवा।


स्वमी पाप हरो देवा।


श्रद्धा-भक्ति बढ़ा‌ओ, सन्तन की सेवा॥


ॐ जय जगदीश हरे।


श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे।


स्वामी जो कोई नर गावे।


कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे॥


भगवान विष्णु के मंत्र


1. ॐ नमोः नारायणाय।।


2. ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय।।


3. ॐ श्री विष्णवे च विद्महे वासुदेवाय धीमहि।


तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्।।


4. शान्ताकारम् भुजगशयनम् पद्मनाभम् सुरेशम्


विश्वाधारम् गगनसदृशम् मेघवर्णम् शुभाङ्गम्।


लक्ष्मीकान्तम् कमलनयनम् योगिभिर्ध्यानगम्यम्


वन्दे विष्णुम् भवभयहरम् सर्वलोकैकनाथम्।।


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)