Maa Katyayani: नवरात्रि में षष्ठी के दिन मां कात्यायनी की पूजा का विधान है. इसका उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी है. शास्त्रों के अनुसार, इन्हें ब्रह्मा जी की मानस पुत्री माना गया है. इन्होंने ही स्वर्ग सहित तीनों लोकों पर अधिकार कर देवताओं को स्वर्ग से निकालने वाले महिषासुर का वध विजयादशमी के दिन किया था, इसलिए विजयादशमी के दिन शस्त्रों की पूजा की जाती है. देवी ने महिषासुर और उसकी सेना का वध जिन दिव्य अस्त्रों से किया था, वह उन्हें देवताओं से प्राप्त हुए थे. 


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शास्त्रों के अनुसार, जो भक्त मां दुर्गा के छठे स्वरूप कात्यायनी की आराधना करते हैं, मां की कृपा उन पर सदैव बनी रहती है. इनका व्रत और पूजा करने से कुंवारी कन्याओं के विवाह की बाधा दूर होती है. भगवान श्रीराम ने लंका में रावण से युद्ध करने के पहले और ब्रज की गोपियों ने श्रीकृष्ण को पति के रूप में पाने के लिए कालिन्द्री यमुना तट पर इनकी पूजा की थी, इसलिए ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं. अर्जुन ने भी श्रीकृष्ण की सलाह पर महाभारत युद्ध के पहले माता कात्यायनी की पूजा की थी. 


सूक्ष्म जगत की सत्ता 


अदृश्य, अव्यक्त सूक्ष्म जगत की सत्ता चलाने वाली मां कात्यायनी ही हैं. मां कात्यायनी दिव्यता के अति गुप्त रहस्यों की प्रतीक हैं. क्रोध को हम नकारात्मक ही मानते हैं, किंतु ऐसा नहीं है. यह जानना आवश्यक है कि क्रोध किस प्रकार सकारात्मक बल का प्रतीक है और कब यह नकारात्मक आसुरी शक्ति का प्रतीक बन जाता है. इन दोनों में तो बहुत गहरा भेद है. गहराई और सूक्ष्मता से देखने पर अनुभव में आता है, अज्ञान व अन्याय के प्रति सकारात्मक क्रोध मां कात्यायनी का प्रतीक है. ऐसा कहा जाता है कि ज्ञानी का क्रोध भी हितकर और उपयोगी होता है. जबकि, अज्ञानी का प्रेम भी हानिकारक. बड़े भूकंप, बाढ़, प्राकृतिक आपदा आदि की घटनाएं देवी कात्यायनी से संबंधित हैं. वह क्रोध के उस रूप का प्रतीक हैं जो सृष्टि में सृजनता, सत्य और धर्म की स्थापना करती हैं.


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