सूर्य देव की पुत्री और धर्मराज की बहन हैं माता, जानिए उत्तराखंड के इस धाम की महिमा
यमुना मां (Yamuna) की कृपा जिस पर हो जाए तो उसकी सात पीढ़ियां भी पापमुक्त हो जाती है. सच्चे मन से मां यमुना के दर्शन कर लेने भर से भगवान श्रीकृष्ण (Shrre Krishna) की प्राप्ति होती है. मान्यता है कि भाई दूज (Bhai Duje) के दिन यदि यमुना स्नान करें तो आयु लंबी होती है.
नई दिल्ली : ज़ी आध्यात्म (Zee Adhyatm) में आज हम आपको लेकर चलते हैं चारधाम के पहले पड़ाव यमुनोत्री (Yamunotri) धाम. जो श्रीकृष्ण को सबसे प्रिय हैं, वही यमुना जो श्रीकृष्ण (Lord Shrre Krishna) की जन्मभूमि को सींचती हैं. कहते हैं कि यमुना जी जन्म और मृत्यु के बंधन से मुक्त करने वाली है. तो आइए, चलते हैं पवित्र अविरल धारा के उद्गम की ओर.
मृत्यु का भय दूर करती है मां
यमुना मां को कालिंदी (Kalindi) भी कहा जाता है. वे मृत्यु के देवता यमराज (Yamraj) के साथ साथ न्याय के देवता शनि की भी बहन हैं. ऐसे में मां यमुना के भक्त मानते हैं कि मां के दर्शन करने से मृत्यु का भय और पाप दोनों नष्ट हो जाते हैं. तो आइए आज आपको ऐसी परम कृपालु मां यमुना के धाम यमुनोत्री ले कर चलते हैं.
सूर्य की पुत्री, यमराज की बहन और श्रीकृष्ण की प्रियाओं में से एक, यमुना मां की महिमा अपरंपार है.मां यमुना जिस पर प्रसन्न हो जाए. उसकी अकाल मृत्यु टल जाती है. वो जन्म और जन्मांतर के पापों से मुक्त हो जाता है. यमुना मां (Yamuna) की कृपा जिस पर हो जाए तो उसकी सात पीढ़ियां भी पापमुक्त हो जाती है. सच्चे मन से मां यमुना के दर्शन कर लेने भर से भगवान श्रीकृष्ण (Shrre Krishna) की प्राप्ति होती है. मान्यता है कि भाई दूज (Bhai Duje) के दिन यदि यमुना स्नान करें तो आयु लंबी होती है.
चारधाम यात्रा : पहला पड़ाव
यमुनोत्री को चारधाम यात्रा का पहला पड़ाव कहा जाता है. चार धामों की यात्रा हर साल अक्षय तृतीया से शुरू हो जाती है. यात्रा यमुनोत्री से शुरू होकर गंगोत्री फिर केदारनाथ और आखिर में श्री बद्रीनाथ धाम पर पूरी होती है. मां यमुना का पवित्र धाम उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में है. यहां से एक किलोमीटर दूर स्थित चंपासर ग्लेशियर है, जो यमुना का मूल उद्गम स्थल है. ग्लेशियर की ऊंचाई 4 हजार 421 मीटर है, जिसे कलिंद पर्वत कहा जाता है यहीं से उद्गम होने के कारण यमुना नदी को कालिंदी भी कहते हैं.
असित मुनि की तपस्या
पौराणिक मान्यता के अनुसार यहां पर असित मुनि का आश्रम भी था और उन्होंने ही तप करके मां यमुना को कलिंद पर्वत से प्रवाहित होने के लिए आवाहन किया था. यमुनोत्री धाम पहुंचने के लिए जानकीचट्टी से छह किलोमीटर की चढ़ाई पैदल तय करनी पड़ती है. जानकीचट्टी से यमुनोत्री धाम जाते वक्त रास्ते में खरसाली पड़ता है. जो कि यमुना जी शीतकालीन प्रवास क्षेत्र है. आप वहां के यमुना मंदिर में भी दर्शन कर सकते हैं.
मंदिर एवं दो दिव्य कुंड
चढ़ाई पार करके आप यमुनोत्री धाम पहुंचते हैं. यमुनोत्री धाम के मां यमुना मंदिर का निर्माण टिहरी गढ़वाल के महाराजा प्रतापशाह ने सन 1919 में करवाया था. इसके बाद जयपुर की 'महारानी गुलेरिया' ने इस मंदिर का दोबारा निर्माण करवाया. मंदिर में भगवान यम के साथ देवी यमुना की श्याम मूर्ति स्थापित है.
मंदिर के पास ही गर्म जल का स्त्रोत सूर्य कुंड भी है. ये मां यमुना की महिमा ही है कि जहां पूरे इलाके में हाडकंपा देने वाली ठंड पड़ती है, वहीं ये जल स्त्रोत हमेशा गर्म पानी से युक्त होता हैं. सूर्य कुंड आने वाले श्रद्धालु कपड़े की पोटली में चावल बांध कर उसे सूर्य कुंड के जल में पकाते हैं और इन चावलों को प्रसाद के रूप में खाते हैं. मान्यता है कि इससे स्वास्थ्य उत्तम होता है.
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सूर्य कुंड के पास ही गौरी कुंड भी है. मंदिर परिसर में एक विशाल शिला स्तम्भ भी है जिसे दिव्यशिला के नाम से जाना जाता है. मंदिर के कपाट अक्षय तृतीया के पवित्र दिन खुलते हैं और दीवाली के दूसरे दिन बंद होते हैं. बाकि समय भारी सर्दी और हिमपात के कारण श्रद्धालु मां यमुना के मंदिर और उद्गम तक नहीं जा सकते हैं.
यमुना मैया की कथा
सूर्य पुत्री मां यमुना के बारे में पुराणों में कथा है कि सूर्य की संध्या और छाया नामक दो पत्नियां थीं. इनसे क्रमश यमुना, यम और शनिदेव प्रकट हुए. मान्यता है कि एक बार यमुना जी ने अपने भाई यम को दावत पर अपने घर बुलाया था. स्वादिष्ट भोजन से प्रसन्न होकर जब यमराज ने यमुना जी को वरदान मांगने के लिए कहा तो परम कृपालु मां यमुना ने वरदान मांगा कि भाई दूज के दिन जो यमुना स्नान करें उसके जन्म - मृत्यु के बंधन टूट जाए. ऐसे में भाई दूज पर यमुना के दर्शन और मथुरा में स्नान करने का विशेष महात्म्य है.
भगवान श्रीकृष्ण की प्रिया
यमुना जी को श्रीकृष्ण की प्रिया कहा जाता है. पुराणों में उल्लेख है कि भगवान श्रीकृष्ण की आठ पटरानियों में एक प्रिय पटरानी कालिंदी ही यमुना हैं. वहीं जब कृष्ण भगवान किशोर थे तो उन्होंने यमुना के तट पर ही गोपियों संग रास रचाया. मान्यता है कि श्रीकृष्ण लीलाओं में यमुना जी का भी विशेष स्थान था. ये मां यमुना की महिमा ही है कि भक्त दूर-दूर से उनके दर्शन करने पहुंचते हैं. यमुना पान और यमुना स्नान करते हैं. सच्चे मन से भक्ति और पूजा से माता शीघ्र प्रसन्न होती है.
अब आपको बताते हैं कि यमुनोत्री धाम कैसे पहुंचे.
वायु मार्ग से -
निकटतम हवाई अड्डा देहरादून में जॉली ग्रांट एयरपोर्ट है, जो उत्तरकाशी मुख्यालय से लगभग 200 किमी दूर है. देहरादून हवाई अड्डे से यमुनोत्री तक टैक्सी और बस सेवाएं उपलब्ध हैं.
ट्रेन से -
यमुनोत्री से निकटतम रेलवे स्टेशन देहरादून (लगभग 100 किमी) है. देहरादून से यमुनोत्री बस/टैक्सी से पहुंचा जा सकता है.
सड़क से -
यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 94 से होकर पहुँचते है. राज्य परिवहन की बसें उत्तरकाशी और ऋषिकेश (200 किमी) के बीच नियमित रूप से चलती हैं.
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