Mahakumbh 2025...तब 20 हजार रुपये में संपन्न हो जाता था महाकुंभ का आयोजन, अब का खर्च चौंका देगा
Kumbh Expenditure: प्रयागराज में 7,500 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत और 40 करोड़ श्रद्धालुओं के आगमन के साथ अब तक का सबसे बड़ा महाकुंभ आयोजित होने जा रहा है. इस पृष्ठभूमि में आइए समझते हैं कि पिछली शताब्दी में इस धार्मिक समागम के लिए कितना खर्च आया करता था.
Maha Kumbh Cost Evolution: यूपी के प्रयागराज में इस समय चल रहे महाकुंभ में लाखों श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाने की तैयारी कर रहे हैं. इस दौरान यूपी सरकार ने जोरदार व्यवस्था कर रखी है. इस कुंभ में सरकार ने इतने पैसे खर्च किए जिसका अंदाजा लगाना सबके बस की बात नहीं है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस विशाल आयोजन की लागत में कितना फर्क आ गया है? अभी जब इस कुंभ के आयोजन का अनुमानित खर्च करीब 7,500 करोड़ रुपये है और 40 करोड़ श्रद्धालुओं की भीड़ की उम्मीद की जा रही है, तब यदि हम पिछली सदी के महाकुंभों के खर्च पर नजर डालें, तो वह अंतर चौंकाने वाला है.
1882 के महाकुंभ में लगभग 8 लाख श्रद्धालु
दरअसल, टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक 1882 के महाकुंभ में लगभग 8 लाख श्रद्धालु मौनी अमावस्या के दिन संगम में स्नान करने पहुंचे थे, जब भारत की कुल जनसंख्या 22.5 करोड़ थी. उस समय कुंभ के आयोजन में खर्च सिर्फ 20288 रुपये आज के हिसाब से करीब 3.6 करोड़ रुपये आया था. इसके बाद 1894 के महाकुंभ में 10 लाख श्रद्धालु पहुंचे और खर्च बढ़कर 69,427 रुपये (लगभग 10.5 करोड़ रुपये) हो गया था.
तब तो खर्च भी बहुत कम था..
रिपोर्ट के मुताबिक 1906 के कुंभ में करीब 25 लाख लोग पहुंचे और खर्च 90,000 रुपये (आज के हिसाब से 13.5 करोड़ रुपये) था. 1918 में आयोजित कुंभ में 30 लाख श्रद्धालुओं ने संगम में स्नान किया और प्रशासन ने इस आयोजन के लिए 1.4 लाख रुपये (आज के हिसाब से 16.4 करोड़ रुपये) आवंटित किए थे.
जब मदन मोहन मालवीय ने पंचांग दिखा दिया..
इतिहासकार प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी ने बताया कि 1942 के महाकुंभ के दौरान एक दिलचस्प घटना घटी थी. उस समय भारत के वायसराय और गवर्नर जनरल लॉर्ड लिनलिथगो प्रयागराज आए थे और उन्होंने देखा कि लाखों लोग धार्मिक गतिविधियों में लीन हैं. जब उन्होंने खर्च के बारे में पूछा, तो मदन मोहन मालवीय ने कहा कि यह सिर्फ दो पैसे का खर्च है. इसे समझाने के लिए उन्होंने पंचांग दिखाया, जिसका मूल्य महज दो पैसे था. तब मदन मोहन मालवीय ने वायसराय से यह भी कहा था कि यह कोई भीड़ नहीं है, बल्कि यह उन भक्तों का संगम है, जिनकी आस्था अडिग है.