Mahabharat: महाभारत में लीलाधर वंशीवाले श्री कृष्ण के पास अस्त्र-शस्त्र के रूप में सुदर्शन चक्र मौजूद था. इस बात की जानकारी तो लगभग सभी लोगों को है लेकिन क्या आपको पता है कि उनके पास एक शंख भी था. इस शंख की आवाज इतनी तेज थी कि उसके नाद से तो एक बार यमलोक भी हिलने लगा था. इस कहानी में हम आपको बताएंगे कि शंख की पूरी कहानी.


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कृष्ण के शंख का नाम


पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक सबसे पहले तो हम आपको बता रहे हैं इसका नाम. इस शंख का नाम था पाञ्चजन्य. इस शंख की आवाज कई किलोमीटर तक जाती थी. इसी शंख की गर्जन के जरिए श्री कृष्ण पांडवों की सेना में उत्साह का संचार करते थे. वहीं पाञ्चजन्य शंख की आवाज सुनकर कौरवों की सेना में भय व्याप्त हो जाता था.


छठा रत्न है पाञ्चजन्य शंख


महाभारत के मान्यताओं के मुताबिक इसकी उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी. समुद्र मंथन के दौरान कुल 14 रत्न निकले थे. इनमें से छठा रत्न पाञ्चजन्य शंख था. पौराणिक मान्यता के अनुसार एक दैत्य ने भगवान श्री कृष्ण के गुरु के पुत्र पुनरदत्त का अपहरण कर लिया.


यमलोक की ओर भागा दैत्य


इस बात की जानकारी जब श्री कृष्ण को मिली तो वह अपने गुरु पुत्र को बचाने के लिए दैत्य नगरी की ओर प्रस्थान कर गए. वहां उन्होंने देखा कि वह दैत्य शंख के भीतर छुपकर सो रहा था. भगवान कृष्ण ने जैसे ही दैत्य को लात मारी तो वह तुरंत उठकर यमलोक की ओर भाग गया. इस दौरान वह शंख वहीं रह गया जिसे भगवान अपने पास रख लिया.


नाद से हिलने लगा था यमलोक


शंख हासिल कर लेने के बाद कृष्ण यम नगरी की ओर चल पड़े जहां उन्हें यमदूतों ने अंदर नहीं जाने दिया. जिसके बाद श्री कृष्ण ने पांचजन्य शंख से शंखनाद कर दिया. पाञ्चजन्य के नाद से यमलोक हिलने लगा. जिसके बाद यमराज ने खुद कृष्ण के गुरु के पुत्र पुनरदत्त को लौटा दिया. जिसके बाद वह अपने गुरु के पास पहुंचे. वहां पहुंचकर उन्होंने उनके पुत्र और शंख दोनों को लौटा दिया. जिसके बाद गुरु ने शंख वंशीवाले को दे दिया.


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)