Mahabharata War: महाभारत (Mahabharata) का युद्ध पांडवों (Pandavas) और कौरवों (Kauravas) के बीच लड़ा गया था. इस युद्ध में ना चाहते हुए भी हस्तिनापुर (Hastinapur) की रक्षा करने की प्रतिज्ञा के कारण कौरवों और पांडवों के पितामह भीष्म को कौरवों का प्रधान सेनापति बनकर उनकी तरफ से युद्ध करना पड़ा था. हालांकि, महाभारत युद्ध के पहले और युद्ध के दौरान पितामह भीष्म ने कई बार दुर्योधन को समझाने की कोशिश की, उससे कहा कि वह पांडवों से संधि कर ले, लेकिन दुर्योधन अपनी जिद पर अड़ा रहा. दुर्योधन कहता रहा कि वह पांडवों से मेल नहीं करेगा और उनको सुई की नोक भर भी जमीन नहीं देगा. युद्ध के दौरान सूर्योदय के बाद दुर्योधन, दुशासन और शकुनि पितामह से मिलने उनके शिविर में गए थे. तब भीष्म ने शकुनि को दुर्योधन और दुशासन के सामने बहुत डांटा था. आइए जानते हैं कि इसका कारण क्या था?


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जब पितामह के शिविर में पहुंचे मामा शकुनि


दरअसल जब शकुनि, दुर्योधन और दुशासन के साथ पितामह भीष्म के शिविर में पहुंचे तब वह अपने घावों पर लेप लगा रहे थे. ये देखकर शकुनि ने पितामह से पूछा कि हे तात्! आपके घाव ज्यादा गहरे तो नहीं हैं. ये बात सुनते ही भीष्म भड़क गए थे और शकुनि को उनको दोनों भांजों दुर्योधन और दुशासन के सामने फटकार लगा दी थी.


पिता ने इस बात पर शकुनि को डांटा


शकुनि को डांटते हुए पितामह भीष्म ने कहा था कि गांधार नरेश ये बात तुम पूछ रहे हो. जो घाव सबसे गहरा है उसके बारे में क्यों नहीं पूछते? पहली बात तो तुम मुझे तात् मत कहा करो. मैं तुम्हारा तात् नहीं हूं. दूसरा ये कि तुमको समझ नहीं आ रहा है कि हस्तिनापुर नामक जिस विशाल वृक्ष के नीचे तुम इतने साल से बैठे हो उसी को काट रहे हो. अगर ये वृक्ष ही नहीं रहेगा तो कहां बैठोगे.


दुर्योधन को संधि के लिए समझाया


हालांकि, इसके बाद भीष्म पितामह ने एक बार फिर दुर्योधन को समझाया कि वह पांडवों से संधि कर ले. इसी में हस्तिनापुर और उसकी भलाई है. अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है. लेकिन दुर्योधन इसका विरोध करता है और कहता है कि वह किसी भी कीमत पर पांडवों से संधि नहीं कर सकता है. उलटा वह पितामह की निष्ठा पर ही सवाल उठा देता है.


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(Disclaimer: ये स्टोरी सामान्य मान्यताओं पर आधारित है. Zee News इसकी पुष्टि नहीं करता है.)