Motivational Story: महाभारत के इस कथा से समझें, कैसा होता है सफल जीवन
Motivational Story: एक बार एक शिष्य ने अपने गुरू से पुछा कि गुरुदेव ये सफल जीवन क्या होता है? जिसके बाद ने सोचविचार कर वह अपने साथ अपने शिष्य को लेकर खुले मैदान में गए. वहां उन्होंने शिष्य से कहा कि तुम पतंग उड़ाओ. पढ़ें पूरी कथा.
पृथ्वी पर जो भी आता है वह सफल जीवन जीना चाहता है. इसके लिए वह तरह-तरह की कोशिशों में जुटा हुआ होता है. हर दिन येन केन प्राकारेण वह चाहता है कि हर ऊंचाई को छू ले. वह चाहता है कि जब वह ऊंचाई पाने जाए तो किसी का बंधन न हो. किसी का कोई दबाव न हो. इसी कारण कई बार ऐसा होता है कि ऊंचाई पाने की जिद में इंसान रसातल में पहुंच जाता है. तो इसी प्रकरण से जुड़ी एक कथा आपको बताते हैं.
शिष्य ने पूछा सफल जीवन कैसा होता है?
एक बार एक शिष्य ने अपने गुरू से पुछा कि गुरुदेव ये सफल जीवन क्या होता है? जिसके बाद ने सोचविचार कर वह अपने साथ अपने शिष्य को लेकर खुले मैदान में गए. वहां उन्होंने शिष्य से कहा कि तुम पतंग उड़ाओ. गुरु के आदेश के मुताबिक शिष्य पंतग उड़ाने लगा.
पतंग मांगने लगा धागा
पतंग जैसे-जैसे ऊंचाई पर जाने लगा. वह धीरे-धीरे और ज्यादा धागा मांगने लगा. लेकिन धागा खत्म हो चुका था. शिष्य धागा खत्म होने के बाद भी पतंग को संभाले हुए था. गुरुदेव ये धागे की वजह से पतंग अपनी आजादी से और ऊपर की ओर नहीं जा पा रही है. क्या हम इसे तोड़ दे? ये और ऊपर चली जायेगी.
गुरु ने धागे से पतंग को अलग कर दिया
तभी गुरु ने धागा तोड़ दिया. गुरु को ऐसा करते देख शिष्य को समझ में नहीं आया कि आखिर ये हुआ क्या. धागा टूटते ही पतंग तुरंत ही और ऊंचाई पर पहुंच गया लेकिन अगले ही पल पतंग लपटें लेकर दूर गिर गई. शिष्य को समझ में ही नहीं आया कि आखिर ऐसा क्यों हुआ.
गुरु ने समझाया जीवन का दर्शन
तब गुरु ने शिष्य को जीवन का दर्शन समझाया. उन्होंने कहा कि जिंदगी में जब भी किसी उंचाी को हासिल करते हैं तब हमें अक्सर लगता है कि कुछ ऐसी चीजें हैं जिन्होंने हमें बांध रखा है. हम उन चीजों से आजाद होना चाहते हैं. लेकिन जैसे ही हम आजाद होते हैं लड़खड़ा कर गिर जाते हैं.
आजाद होकर भरना चाहते हैं उड़ान
अक्सर ऐसा होता है कि कोई भी इंसान घर, परिवार, अनुशासन, माता-पिता, गुरु और समाज से आजाद होकर उड़ान भरना चाहता है. वास्तव में ये वही धागा है जो हमे उस ऊंचाई पर बरकरार रखता है. इन धागों के बिना हम एक बार ऊपर तो पहुंच जाते हैं. लेकिन हमारा वही हश्र होता है जो बिना धागे की पतंग का हुआ.
शिष्य ने छूए गुरु के पैर
गुरु की बात सुनकर उसने तुरंत चरण छू लिए. और गुरु ने उसे अनुशासन में रहकर आगे बढ़ने का आशीर्वाद दिया. जिसके बाद गुरु ने शिष्य को बताया कि महाभारत के युद्ध में जब भीष्म पितामह सेनापति के रूप में पांडवों से युद्ध कर रहे थे तबतक कुरु सेना सुरक्षित था लेकिन दुर्योधन चाहता था कि भीष्म पितामह सेनापति का पद छोड़ दें. जिसके बाद कुरु सेना का क्या हाल हुआ सभी को पता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)