Fort Mystery: कुल्लू में लकड़ी से बना एक शाही क़िला, जिसमें कोई कील नहीं लगी! छिपा है ‘राजशिला’ का भी रहस्य
Kullu Naggar Castle Mystery: क्या आज के जमाने में आप यकीन कर सकते हैं कि हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में लकड़ी से बना ऐसा शाही किला भी मौजूद है, जिसमें कोई कील नहीं लगाई गई थी. फिर उन लकड़ियों को जोड़ा कैसे गया.
Mystery of 'Kullu Rajshila: हिमाचल प्रदेश में कुल्लू के एक ऐसा किला बना हुआ है, जिसका निर्माण लकड़ी से हुआ है लेकिन उसमें कोई कील नहीं लगी. कोई सीमेंट नहीं लगा. लेकिन रहस्य इस किले में, सिर्फ तकनीक की नहीं, बल्कि सत्ता, साजिश और किले पर कब्जे के साथ और भी तमाम है. पढ़िए हमारी ये खास रिपोर्ट.
16वीं सदी की ये सम्मोहक इमारत आज भी दूर से ही आकर्षित करती है. मनाली की हसीन वादियो में शहर की चहल-पहल से 20 किमी दूर कुल्लू रियासत का ये किला, सदियों बाद भी सैलानियों के लिए सहज आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है. ये किला कैसे राजमहल और फिर कैसल में बदला, इसकी एक लंबी कहानी है, जो यहां आने जाने वालों को रोमांच से भरती हैं. जी न्यूज की टीम जब यहां पहुंची, तो इसके मैनेजर ने इन्हीं दिलचस्प कहानियों के साथ हमारा स्वागत किया.
अब नग्गर कैसल के नाम से जाना जाता है शाही महल
रहस्य से पहले कुछ कहानियां इस पुराने किले की तामीर की जान लीजिए, जो अब नग्गर कैसल के नाम से जाना जाता है. एक जमाने में ये कुल्लू रियासत का शाही महल हुआ करता था, यानी यहीं से रियासत का पूरा राजकाज चलता था. ये वो दौर था, जब देश में मुगलों का साम्राज्य कायम था. अंग्रेजों की एंट्री एक व्यापारी के तौर पर देश के कुछ हिस्सों में हो चुकी थी. तब भी ये किला सबके आकर्षण का केन्द्र था.
खासतौर पर इसकी बनावट में इस्तेमाल की गई काठकोणी शैली. पूरा किला लकड़ी से बना है, लेकिन इसमें कहीं किसी कील का इस्तेमाल नहीं किया गया. किले में पत्थरों का इस्तेमाल है, लेकिन सीमेंट या गारा जैसी किसी चीज का इस्तेमाल नहीं. कहा जाता है, इस किले के साथ कुल्लू के राजा सिद्धि सिंह ऐसी राजधानी बनाई थी, जो रणनीतिक लिहाज से काफी अहम थी.
नग्गर के इस राजमहल में आज भी वो कमरा है, जहां कुल्लू के राजा रहा करते थे. वो कमरा हालांकि अब काफी हद तक आधुनिक सुविधाओं के लिहाज से बदला जा चुका है, लेकिन राजपरिवार के किस्सों और इसकी विरासत का आकर्षण आज भी सैलानियों को खींच लाता है.
राजपरिवार ने अंग्रेजों को बेच दिया किला
कुल्लू रियासत के इतिहास में सबसे भयानक मोड़ 19वीं शताब्दी में आया, जब एक आक्रमण के बाद पूरी रियासत सिख साम्राज्य का हिस्सा बन गई. तब कुल्लू के राजा हुआ करते थे अजीत सिंह. 1839 में सिख आक्रमण के बाद पूरी रिसायत सिख साम्राज्य का हिस्सा हो गई, लेकिन ये साम्राज्य उन्हें रास नहीं आया.
8 साल के अंदर ही एक समझौते के तहत उन्होंने पूरी रियासत अंग्रेजों को सौंप दी. अंग्रेजों ने रियासत की जागीर यहां के राजपरिवार को सौंप दी. तब कुल्लू के राजा ज्ञान सिंह ने एक अजीब सौदे में ये राजमहल एक अंग्रेज अफसर को बेच दी. इस तरह कुल्लू रियासत का ये राजमहल यूरोपियन कैसल में बदल गया, लेकिन रियासत की इस अनूठी विरासत में कुछ ऐसे रहस्य बाकी थे, जिसने अंग्रेज अफसर के भी होश उड़ा दिए.
नग्गर कैसल, यानी कुल्लू रियासत के राजमहल के रहस्य का सिलसिला अंग्रेजों के इसी रहस्योद्घाटन से शुरु होता है. दरअसल, अंग्रेज अफसर ने खरीदा तो था ये पूरा महल. लेकिन जब यहां रहने आया, तो इसके महल के आधे हिस्से में जो कुल्लू रियासत का पूजास्थल था, उसकी दिव्य शक्तियो के एहसास ने अंग्रेज अफसर को भी सोचने पर मजबूर कर दिया. क्या है महल की दिव्य शक्तियों का रहस्य, पहले आपको ये समझाते हैं.
दीवारों पर उकेरी गई थीं अजीब आकृतियां
कभी आप कुल्लू के नग्गर कैसल जाएं, तो यहां आपको कुछ भी ढंका छिपा नहीं मिलेगा. 400 साल का पूरा इतिहास इस महल के अलग अलग कोनों में दर्ज मिलेगा. कुल्लू महाराज के कमरे से लेकर राजमहल के एक कोने में लगी पत्थर की मूर्तियों तक सब कुछ सरेआम दिखता है.
जी मीडिया की टीम जब इस कैसल की एक एक दर ओ दीवार का जायजा ले रही थी तब यहां के स्टाफ हमें उस हिस्से में ले गई, जो कैसल का सबसे पवित्र हिस्सा माना जाता है. यहां दीवारों पर कुछ अजीब सी आकृतियां उकेरी गई हैं, जो देखने में देवी देवताओं सी लगती हैं, लेकिन हैं ये कुल्लू राज परिवार के सदस्यों की.
दरअसल कुल्लू राजपरिवार के इस किले का एक धार्मिक महत्व भी था. इसके तहत पूरी रियासत में राजपरिवार के जितने सद्सयों की मौत हुई, उनकी तस्वीरें इस किले के एक खास हिस्से में दीवार पर उकेरा जाता था. इसकी वजह थी राजपरिवार की एक खास मान्यता, जिसके तहत नग्गर राजमहल का निर्माण किया गया था.
अंग्रेज अफसर ने शिला में मारी लात और...
आपको ये जानकर हैरानी होगी, कि ये किला कुल्लू राजपरिवार के पुराने किले के ही पत्थरों से बनाया गया है. वो किला मौजूदा नग्गर किले से दूर व्यास नदी के उस पार हुआ करता था. ये किला 16वीं सदी में बना, लेकिन रवायतें वही यहां अपनाई जा रही थी, जो सदियों से न्यायप्रियता के लिए मशहूर थी. पुराने किले की तरह इस राजमहल में भी एक ऐसी अदालत बनाई गई थी, जिसमें राजा पहले की तरह बैठते और अपने लोगों की समस्याओं का निदान करते.
इसी किले में जैसे न्याय होता था, वैसे ही दोषियों को सजा भी होती थी. इसके लिए किले के सबसे निचले हिस्से में एक खास तहखाना बनाया गया था, जिसमें दोषियों को सजा सुनाए जाने के बाद रखा जाता था. कुल्लू राजमहल से जुड़े ये सारे किस्से जब इसे खरीदने वाले अंग्रेज अफसर ने सुने तो उसके होश उड़ गए. खासतौर पर एक ऐसे हिस्से को लेकर, जहां राजपरिवार के मृतकों की छवियां दीवार पर गढ़ी हुई थीं. किले के इस हिस्से में एक ऐसी चट्टान रख हुई थी, जिसे देवताओं का वरदान माना जाता था.
कुल्लू के लोग मानते हैं कि नग्गर कैसेल के एक हिस्से में रखी इस शिला को किसी अंग्रेज अफसर ने लात मारकर ये कहा था कि ये सब ढोंग और अंधविश्वास है. लेकिन जैसे ही उसने लात मारी, वो मोटी सी चट्टान टूट गई. जिस हिस्से पर लात मारी वो अलग हो गया. कैसल में आज भी उस चट्टान के एक हिस्से पर एक रहस्यमयी घटना होती है, जिसे जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे.
लगती है 18 देवताओं की अदालत
जिस शिला पट्टी, या यू कहें नग्गर कैसेल की राजशिला को अंग्रेज अफसर ने अंधविश्वास कहकर लात मारी थी, उसके कुछ दिनों के बाद उसकी मौत हो गई. इसके बाद अंग्रेजों ने पूरे महल पर कब्जा होने के बावजूद उस हिस्से को अलग रखा, जहां वो शिला थी, जहां राजपरिवार के लोगों की मौत के बाद मूर्तियां उकेरी गई थीं. वो शिला दरअसल दिव्य शिला थी, जहां राजपरिवार के वक्त से ही देवताओं की अदालत लगाई जाती थी. ये ऐसी परंपरा है, जिसका पालन आज 21वीं शताब्दी में भी होता है. इसे आज भी कहते हैं जगती पट,
जैसी कि जगती पट्टी मंदिर की मान्यता है, यहां अदालती सुनवाई के लिए 18 कोटि देवताओं को बुलाया जाता है. मंदिर में सुनवाई के लिए इनके विराजमान होते ही दरवाजा बंद हो जाता है. मंदिर के अंदर सिर्फ देवताओं के गुर, यानी सेवक या पुजारी होते हैं और इनके साथ मौजूद होता है कुल्लू राजपरिवार का एक सदस्य. इसके बाद अदालती कार्रवाई से पहले कुछ ऐसी गुप्त क्रियाएं होती है, जिनका पता बाहरी दुनिया को आज तक नहीं. न कोई सेवक पुजारी बताता है, और ना ही कुल्लू राजपरिवार का वारिस.
पंजबीर की तरफ से सुनाया जाता है फैसला
राजपरिवार के सदस्य को यहां पंजवीर कहते हैं. ये पंजवीर ही देवताओं का आह्वान करता है और बेहद ही गुप्त तरीके कुछ ऐसे अनुष्ठान किए जाते हैं, जिसके बाद हर देवता के संकेतों को स्थानीय परंपरा के मुताबिक समझा जाता है. देवताओं के संकेत मिलने के बाद वहां बैठे लोगों के बीच आम राय बनती है और पंजबीर की तरफ से फैसला सुनाया जाता है. जैसे पशुबलि पर हाई कोर्ट के फैसले से देवताओं की अदालत में असहमति जताई गई थी, जैसे कोरोना जैसी महामारी में देवताओं से रक्षा की गुहार लगाई गई थी, यहां हुआ हर फैसला लोगों को मानना ही पड़ता है.
तो आखिर में बात आकर इसी रहस्यमयी शिला पर रुक जाती है. जिस तरह जगती पट्टी मंदिर की विश्वसनीयत है, उसमें जब तक ये शिला रहेगी, देवताओं की अदालत यहां लगती रहेगी.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)