Narak Chaturdashi 2024: नरक चतुर्दशी पर क्यों की जाती है हनुमान जी की पूजा? जानें महत्व और प्रसन्न करने का आसान उपाय
Narak Chaturdashi 2024 Significance: आज पूरे देशभर में नरक चतुर्दशी का पर्व मनाया जा रहा है. बता दें कि, हर साल कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर नरक चतुर्दशी का त्योहार मनाया जाता है.
Narak Chaturdashi 2024: आज पूरे देशभर में नरक चतुर्दशी का पर्व मनाया जा रहा है. बता दें कि, हर साल कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर नरक चतुर्दशी का त्योहार मनाया जाता है. इसे रूप चौदस, नरक चौदस और काली चौदस के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन रात में यम के नाम का दीपक जलाया जाता है.
यह भी पढ़ें: दिवाली के बाद कर्मफलदाता शनि होंगे मार्गी, इन 5 राशियों की सोने से चमकेगी किस्मत, खूब मिलेगी तरक्की!
नरक चतुर्दशी पर होती है हनुमान जी की पूजा
नरक चतुर्दशी पर यमराज की पूजा करने का विधान है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस दिन हनुमान जी की भी पूजा की जाती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार नरक चौदस पर बजरंगबली की पूजा करने से संकटों से मुक्ति मिलकी है और जीवन में सुख-शांति का वास होता है. आइए जानते हैं कि इस दिन क्यों हनुमान जी की पूजा की जाती है.
इसलिए होती है पूजा...
वाल्मीकि की रामायण के अनुसार माना जाता है कि हनुमान जी का जन्म कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन स्वाति नक्षत्र में हुआ था. यह तिथि दिवाली से एक दिन पहले यानी नरक चतुर्दशी की तिथि के रूप में पड़ती है. इस कारण नरक चतुर्दशी पर हनुमान जी की पूजा की जाती है. नरक चतुर्दशी पर हनुमान जी को प्रसन्न करने के लि हनुमान चालीस का पाठ करें. इसका पाठ करने से जीवन में सुख-शांति का वास होता है और जीवन की समस्याएं से राहत मिल जाती है.
यह भी पढ़ें: Ganesh Ji Aarti: जय गणेश, जय गणेश देवा... यहां पढ़ें गणपति बप्पा की संपूर्ण आरती
यहां पढ़ें हनुमान चालीसा का पाठ
दोहा
श्रीगुरु चरन सरोज रज निजमनु मुकुरु सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।
चौपाई
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।
रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।
महावीर विक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।
कंचन वरन विराज सुवेसा।
कानन कुण्डल कुंचित केसा।।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
काँधे मूँज जनेऊ साजै।
शंकर सुवन केसरीनंदन।
तेज प्रताप महा जग वन्दन।।
विद्यावान गुणी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
विकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्र के काज संवारे।।
लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीशा।
नारद सारद सहित अहीसा।।
जम कुबेर दिगपाल जहां ते।
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा।।
तुम्हरो मंत्र विभीषन माना।
लंकेश्वर भये सब जग जाना।।
जुग सहस्र योजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डरना।।
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक तें कांपै।।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।।
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा।।
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै।।
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिनके काज सकल तुम साजा।
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोई अमित जीवन फल पावै।।
चारों युग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा।।
साधु-संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे।।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस वर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।।
तुम्हरे भजन राम को भावै।
जनम-जनम के दुख बिसरावै।।
अन्त काल रघुबर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई।।
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेई सर्व सुख करई।।
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
जै जै जै हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहिं बंदि महा सुख होई।।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा।।
दोहा
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)