Shardiya Navrtari God Bhairava: शारदीय नवरात्रि पर हम माता दुर्गा की पूजा करते हैं, लेकिन इस समय में भगवान भैरवनाथ का महत्व भी है. भैरवनाथ का जन्म और उनकी माता दुर्गा से जुड़ी कथाएं हमें यह सिखाती हैं कि किस तरह पूजा, आस्था, और श्रद्धा का महत्व है. भैरवनाथ, अर्थात भैरव को शिवजी का स्वरूप माना जाता है. भैरव, भगवान शिव के शक्ति और उनके उग्र रूप का प्रतीक हैं. नवरात्रि हिंदू धर्म में मां दुर्गा की उपासना का समय है. इस अवसर पर, माम दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है. नवरात्रि में भैरवनाथ का भी विशेष महत्व है क्योंकि वह शक्ति के उग्र स्वरूप के रूप में जाने जाते हैं. भैरवनाथ के दर्शन किए बिना माता दुर्गा की पूजा अधूरी मानी जाती है. इसलिए, भैरवनाथ का जन्म और उनका महत्व नवरात्रि में उस समय को और भी पुण्यमय बनाता है.


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भैरवनाथ जन्म कथा
भैरवनाथ का हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण स्थान है. उनके जन्म के बारे में कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. सबसे प्रमुख कथा इस तरह है कि एक बार तीन मुख्य देवता - ब्रह्मा, विष्णु, और महेश (शिव) - अपनी श्रेष्ठता पर बहस कर रहे थे. इस बहस के दौरान, ब्रह्मा ने भगवान शिव को अपमानित किया. इस पर भगवान शिव ने अपने क्रोध से भैरव को उत्पन्न किया. शिवपुराण अनुसार, भैरवनाथ का जन्म भगवान शिव के रक्त से हुआ था. जबकि दूसरी पौराणिक कथा में कहा गया है कि ब्रह्मा के अपमान के कारण भैरव की उत्पत्ति हुई और उन्होंने ब्रह्मा की पांचवीं शिर का वध किया.


माता दुर्गा से जुड़ा भैरवनाथ का महत्व
भैरवनाथ का महत्व माता दुर्गा से जुड़ा हुआ है. पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक समय भैरवनाथ ने माता दुर्गा का पीछा किया, जिससे वह एक गुफा में छिप गई. वहां छिपकर, माता दुर्गा ने तपस्या की. भैरवनाथ ने जब माता को गुफा में पाया और उन पर हमला किया तो माता ने उसका वध कर दिया. वध के बाद, भैरवनाथ को अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने माता से क्षमा मांगी. माता ने भैरव को आशीर्वाद दिया कि जब भी कोई भक्त माता का दर्शन करेगा, वह उसके दर्शन के बिना पूजा में सफलता नहीं प्राप्त करेगा.


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)