नई दिल्ली: पितृपक्ष (Pitru Paksha) 14 सितंबर से शुरू हो रहे हैं. पितृपक्ष पूर्णिमा के साथ शुरू होकर 16 दिनों के बाद सर्व पितृ अमावस्या के दिन समाप्त होगा है. इस 16 दिनों में हिंदू धर्म को मानने वाले लोग अपने पितरों को याद करके उनका श्राद्ध कहते है. पितरों को मुक्ति और उन्हें ऊर्जा देने के लिए श्राद्ध कर्म किये जाते है. इस बार पितृपक्ष 14 सितंबर से शुरू हो रहा है जो 28 सितंबर तक चलेगा.


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कौन कहलाते हैं पितर
ऐसे व्यक्ति जो धरती पर जन्म लेने के बाद जीवित नहीं है, उन्हें पितर कहते हैं. फिर वह चाहें विवाहित हों, अविवाहित हों, बुजुर्ग हों, स्त्री हो या पुरुष अगर उनकी मृत्यु हो चुकी है, तो उन्हें पितर कहा जाता है. पितरों की आत्मा की शांति के लिए भाद्रपद महीने के पितृपक्ष में उनको तर्पण दिया जाता है. 


तिथि अनुसार होता है श्राद्ध 
पूर्णिमा से अमावस्या की बीच में आने वाली सभी तिथियों में लोग अपने पूर्वजों का श्राद्ध करते हैं. ये तिथि उस जिन की मानी जाती है, जिस दिन कोई पूर्वज, पितर या परिवार के मृत सदस्य के परलोक सिधारा हो. पितृपक्ष में पड़ने वाली उसी तिथि को ही उनका श्राद्ध करना चाहिए.


तिथि याद न होने पर अमावस्या को करें श्राद्ध
परिवार के किसी पूर्वज की मृत्यु की तिथि आपको याद नहीं है, तो भी आप श्राद्ध कर सकते हैं. ऐसा स्थिती में सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध किया जा सकता है. सर्वपितृ अमावस्या को महालय अमावस्या भी कहा जाता है.


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ऐसे करें श्राद्ध
श्राद्ध पक्ष के दिनों में पूजा और तर्पण करना चाहिए. पितरों के लिए बनाए गए भोजन के चार हिस्से निकाले जाते हैं. उसमें से एक हिस्सा गाय, दूसरा हिस्सा कुत्ते, तीसरा हिस्सा कौए और एक हिस्सा अतिथि के लिए रख दें. गाय, कुत्ते और कौए को भोजन देने के बाद ब्राह्मण को भोजन कराएं. इन दिनों में दान पुण्य भी करना चाहिए उसका भी विशेष फल मिलता है.