Pitru Paksha Significance: पितृपक्ष का बहुत ही महत्व है. पूर्वजों को याद करने का यह अद्भुत पखवाड़ा है. पितरों के प्रति श्रद्धा व्यक्त कीजिए तो वह आपको शक्ति प्रदान करेंगे. पितृपक्ष का महत्व इस बात में नहीं है कि हम श्राद्ध कर्म को कितनी धूमधाम से मनाते हैं. वास्तविक महत्व यह है कि हम अपने पितामह, माता-पिता की जीवित अवस्था में कितनी सेवा व आज्ञा का पालन करते हैं. जो व्यक्ति अपने माता-पिता की सेवा न कर उनका अपमान करते हैं, उनके निधन के बाद यदि वह श्राद्ध करते हैं तो वह निरर्थक ही माना जाएगा. हां, यदि हृदय में प्रायश्चित की भावना है तो उनके कोप से अवश्य बचेंगे.


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माता-पिता की सेवा ही पितरों के प्रति श्रद्धा


यदि सौभाग्यवश किसी के माता-पिता जीवित हैं तो उनकी सेवा और सम्मान करना अनिवार्य है. यही नहीं, जब भी आप बाहर कहीं जाएं या ऑफिस में कोई सीनियर यानी बुजुर्ग आपका अधीनस्थ हो तो भी उसके प्रति सम्मान का भाव रखें. वरिष्ठों का सम्मान करने से पितरों का आशीर्वाद सदैव प्राप्त होता रहता है. अक्सर देखने में आता है कि युवा अधिकारी अपने उम्रदराज अधीनस्थों के साथ बदतमीजी से पेश आते हैं, जो गलत है. पद का मद कतई नहीं होना चाहिए. पद की प्रतिष्ठा के साथ शिष्टाचार सदैव रखना चाहिए, अन्यथा वरिष्ठ का अपमान किया तो पितर आपकी क्लास जरूर लेंगे.


श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धा, धन का दिखावा नहीं 


श्राद्ध मीमांसा में वर्णन है कि अगर व्यक्ति के पास श्राद्ध करने के लिए कुछ भी न हो तो वह अपने दोनों हाथ से कुशा उठाकर आकाश की ओर दक्षिणमुखी होकर अपने पूर्वजों का ध्यान करके रोने लगे और जोर-जोर से अंतर्भाव से कहे- हे मेरे पितरों मेरे पास कोई धन नहीं है. मैं तुम्हें इन आंसुओं के अतिरिक्त कुछ भी नहीं दे सकता हूं. वास्तव में पितरों को आपसे धन या कोई अन्य चाहत भी नहीं है. उनकी तो केवल एक ही इच्छा है कि उनकी अधूरी इच्छाओं को आने वाली पीढ़ी पूरा करें.


स्कूल, अस्पताल में वाटर कूलर लगवाने से भी प्रसन्न होते हैं पितर


बहुत से लोग अपने पूर्वजों के नाम से विद्यालय बनवाते है. अस्पताल, धर्मशाला, कुआं, पेयजल की व्यवस्था के लिए वाटर कूलर, अन्नदान और यहां तक कि अंतिक्रिया कलापों के लिए भी शेड बनवाते हैं. स्कूल बनवाने की सामर्थ्य नहीं है तो एक-दो गरीब बच्चों के पढ़ाई का खर्च भी दे सकते हैं. यदि पूर्वजों की अधूरी इच्छाओं से अनभिज्ञ हो तो सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना चाहिए. पितरों के नाम से पौधे लगाकर पर्यावरण सुधार में भी  योगदान कर सकते हैं.


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