Ram Katha: राज्याभिषेक के बाद रामजी ने मित्रों से आखिर क्या ऐसा कहा, सब टकटकी लगाकर देखने लगे
Ramayan Story: राज्याभिषेक और मेहमानों के विदा होने के बाद श्री रघुनाथ जी ने लंका विजय के मित्रों को बुलाकर कहा कि आप लोगों ने मेरे लिए अपने घर और परिवार यहां तक कि देह को भी भुला दिया. इसका धन्यवाद कहने के लिए मेरे पास तो शब्द ही नहीं हैं. आप सब मुझे बहुत ही प्रिय हो.
Ramayan Story in Hindi: प्रभु श्रीराम के राज्याभिषेक के बाद देवता, ऋषि मुनि, वेद जितने लोग भी उन्हें बधाई देने आए थे, एक-एक कर अयोध्या से अपने धाम को चले गए. इसके बाद श्री रघुनाथ जी ने सभी सखाओं को अपने पास बुलाया कर बैठाया और धन्यवाद देते हुए कहा कि तुम सभी लोगों ने मेरी बड़ी सेवा की है. अब सबके मुंह पर मैं क्या बड़ाई करूं. मेरे हित के लिए तुम लोगों ने अपने घरों तथा सभी प्रकार के सुखों का त्याग कर दिया. इससे तुम सब मुझे अत्यंत प्रिय हो. उन्होंने यहां तक कहा कि तुम लोग मेरे छोटे भाईयों, राज्य, संपत्ति, जानकी जी से भी अधिक प्रिय हो. इस बात को मैं शब्दों में नहीं कह सकता हूं. इतने दिन साथ रहने के कारण अब यह प्रीति और भी गहरी हो गई है.
श्री रघुनाथ ने लंका विजय के सभी मित्रों को बुलाकर धन्यवाद दिया
प्रभु ने बहुत ही संकोच के साथ कहा कि हे मित्रों, अब आप सब अपने अपने घरों को जाएं, लेकिन वहां जाकर भी मुझे याद करते रहना और कभी भुला न देना. प्रभु के वचन सुनकर सब प्रेम से मग्न हो गए और सोचने लगे कि हम कौन हैं और कहां पर हैं. यहां तक कि अपनी देह की सुध भी भूल गए थे. वह सब श्रीराम के सामने हाथ जोड़े टकटकी लगाकर देखते ही रहे, किंतु अत्यधिक प्रेम के कारण कुछ कह नहीं सके. बस कभी उनका चेहरा तो कभी उनके चरण कमल ही देखते रहे. इसके बाद अयोध्या नरेश ने अनेक रंगों के सुंदर वस्त्र और गहने मंगाए. सबसे पहले भरत जी आगे बढ़े और सुग्रीव को अपने हाथों से सुंदर वस्त्र के साथ ही आभूषण पहनाए, फिर भगवान श्री राम का संकेत पाकर लक्ष्मण जी आगे बढ़े और उन्होंने लंकाधिपति महाराज विभीषण को वस्त्र और आभूषण पहनाने का काम किया.
श्रीराम ने जामवंत और नील को वस्त्र आभूषण पहनाए
वस्त्र आभूषण पहनाने के क्रम में युवराज अंगद चुपचाप अपने स्थान पर बैठे ही रहे. उनका प्रेम देखकर श्रीराम ने भी उन्हें बुलाने का प्रयास नहीं किया और जामवंत तथा नील को बुलाकर अपने हाथों से आभूषण और वस्त्र पहनाएं. सभी ने उनके प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया और उनके चरणों में सिर नवाकर अपने स्थान पर चले गए.