Ramayana Story: श्री रघुनाथ को उपदेश देने उनके महल में पहुंचे मुनि वशिष्ठ
Muni Vashishtha: रामायण के किस्से-कहानियां तो हम सभी बचपन से ही सुनते आए हैं. इससे जुड़े किरदार भी हमारे लिए काफी अहमियत रखते हैं. क्या आप जानते हैं कि मुनि वशिष्ठ एक बार श्री रघुनाथ (Shri Raghunath) को उपदेश देने के लिए उनके महल (Palace) में पहुंच गए थे. जानें ये पूरी कहानी.
Muni Vashishtha Reached Shri Raghunath's Palace: अयोध्या नरेश महाराजा दशरथ ने वशिष्ठ मुनि से मंत्रणा और सहमति के बाद श्री राम (Shri Ram) को युवराज घोषित करने के साथ ही राज्याभिषेक (Coronation) का निर्णय लिया. इसकी सूचना मिलते ही पूरे राजभवन में हलचल तेज हो गई. रानियों को जैसे ही यह समाचार मिला, वे हर्षित हो उठीं और समाचार देने वालों को रत्न, वस्त्र, आभूषण आदि उपहार (Gifts) में दिए.
श्री राम के महल में पहुंचे ऋषि
माता कौशल्या (Mata Kaushalya) ने तो ब्राह्मणों को बुलाकर बहुत सारा दान दिया और ग्राम देवता, ग्राम देवी तथा नागों की पूजा कर कार्य को निर्विघ्न सम्पन्न कराने की मन्नत मानी. इधर महाराजा दशरथ (Maharaja Dasharatha) ने वशिष्ठ मुनि को बुलाकर आग्रह किया कि वे श्री राम को समयानुसार उपदेश दें ताकि वे युवराज का दायित्व संभाल सकें. ऋषि वशिष्ठ सीधे श्री राम के महल में पहुंचे. गुरु का आगमन सुनते ही श्री रघुनाथ जी दरवाजे तक दौड़ते हुए आए और उनके चरणों में मस्तक झुकाया और आदरपूर्वक अर्घ्य देकर उन्हें घर में लाए.
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गुरु वशिष्ठ को देख आत्मविभोर हो गए श्री राम
श्री राम ने सीता जी (Sita Ji) के साथ गुरु जी के चरण स्पर्श किए और उन्हें सम्मान सहित कक्ष में लाकर आसन दिया और हाथ जोड़ कर कहा कि सेवक के घर स्वामी का पधारना मंगलों का मूल और अमंगलों का नाश करने वाला होता है. उन्होंने कहा कि हे नाथ, उचित तो यही था कि प्रेमपूर्वक दास को ही काम के लिए बुलावा भेजते, नीति भी यही कहती है. उन्होंने आगे कहा, प्रभु आपने प्रभुता छोड़ स्वयं पधार कर जो स्नेह दिया है, उससे आज यह घर पवित्र हो गया है. अब जो भी आज्ञा हो कहें, मैं वही करूंगा. स्वामी की सेवा में ही सेवक का लाभ है. श्री राम के वचनों को सुनकर गुरु वशिष्ठ (Guru Vashishtha) बहुत ही प्रसन्न होकर बोले, हे राम, आप ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि आप सूर्यवंश के भूषण हैं. राजा दशरथ आपको युवराज का पद देना चाहते हैं इसलिए उन्होंने राज्याभिषेक की तैयारियां शुरू कराई हैं.
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विचारों में खो गए श्री राम
गुरु वशिष्ठ ने श्री राम को बताया कि उन्हें किस तरह से उपवास हवन आदि का संयम करना है ताकि विधाता इस कार्य को कुशलता पूर्वक सम्पन्न करा दें. गुरु जी ने युवराज (Prince) के दायित्वों का बोध कराते हुए कहा कि उन्हें इसके लिए मानसिक रूप से तैयार होना है. इतना कहकर गुरु जी तो वहां से चले गए किंतु श्री राम के मन में वैचारिक द्वंद छिड़ गया. वे विचार करने लगे कि हम चारों भाई एक साथ जन्मे, एक साथ भोजन करते, सोते-जागते, खेलते-कूदते बड़े हुए, यहां तक कि कर्णछेदन, यज्ञोपवीत और विवाह उत्सव भी साथ ही हुए फिर इस सूर्यवंश में ऐसा क्यों हो रहा है कि सबको छोड़ कर सिर्फ बड़े का ही राज्याभिषेक किया जा रहा है. जिस समय श्री राम इस बिंदु पर विचारमग्न थे, तभी उनके प्राणों से भी प्रिय भाई लक्ष्मण जी (Laxman) वहां पहुंचे तो उन्होंने कहा कि पूरा नगर इस बात का इंतजार कर रहा है कि कब सीता जी सहित श्री रामचंद्र जी सुवर्ण सिंहासन पर विराजेंगे और इस दृश्य को देखकर उनके नेत्र तृप्त होंगे.
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