MAHASANGRAM: अशोक वाटिका में एक बंदर द्वारा तोड़फोड़ करने की सूचना पर रावण ने अपने सबसे छोटे पुत्र अक्षय कुमार को भेजा किंतु हनुमान जी ने उसे तमाम राक्षसी सेना सहित मार डाला. इसके बाद इंद्र को हराने वाले मेघनाद को भेजा गया. दोनों में घनघोर युद्ध हुआ लेकिन मेघनाद ने ब्रह्मास्त्र चलाया तो उसका सम्मान करते हुए हनुमान स्वयं ही उसके बंधन में बंध गए. मेघनाद उन्हें लेकर रावण के समक्ष उनके दरबार में उपस्थित हुआ. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

हनुमान जी ने रामदूत के रूप में दिया अपना परिचय


रावण ने उनका परिचय पूछा तो हनुमान बोले, 'हे लंकापति रावण! मैं भगवान श्रीराम का दूत और वानर राज सुग्रीव का मंत्री हनुमान हूं. तुमने छल से सीता माता का हरण करके अपना और अपने कुल का अपमान किया है. हे रावण! अभी भी समय है, यदि तुम अपने कुल का कल्याण चाहते हो तो श्रीराम को सीता माता लौटा कर उनसे अपने अपराध की क्षमा मांग लो, अन्यथा इस संसार में तुम्हें कोई भी नहीं बचा सकेगा.'


हनुमान जी की बात सुन क्रोधित हो गया रावण


हनुमान जी के इन शब्दों को सुनकर रावण क्रोध से भर उठा. उसने उसी समय हनुमान का वध करने की आज्ञा दे दी, किंतु विभीषण ने उसे समझाते हुए कहा कि दूत की हत्या करना ठीक नहीं होता है. उसका वध नीति के विरुद्ध है. तब रावण ने आज्ञा दी कि वानर को अपनी पूंछ बड़ी प्यारी होती है इसलिए इसकी पूंछ में आग लगाकर उसे लंका से भगा दिया जाए. आज्ञा का पालन हुआ, शीघ्र ही हनुमान की पूंछ पर तेल में भीगा हुआ कपड़ा लपेटा जाने लगा. हनुमान जी मुस्कराते हुए यह सब देख रहे थे. मन ही मन उन्होंने एक योजना बनाई और उसके अनुसार उन्होंने अपनी पूंछ इतनी लंबी कर दी कि लंका राज्य का सारा कपड़ा, घी और तेल समाप्त हो गया. बाद में उनकी पूंछ में आग लगा दी गई. 


हनुमान जी ने अपनी पूंछ से पूरी लंका को जला दिया


लंका वासी उनका उपहास करते हुए तालियां पीटने लगे. तभी हनुमान ने स्वयं को बंधनों से मुक्त कर लिया. फिर वे घूम-घूम कर अपनी पूंछ में लगी आग से वहां के भवनों और महलों को जलाने लगे. देखते-ही-देखते संपूर्ण लंका आग की लपटों से घिर गई, लंका का सोना पिघल-पिघल कर समुद्र में बहने लगा. राक्षस चीत्कार करते हुए इधर-उधर भागने लगे. हनुमान जी समुद्र में अपनी पूंछ की आग बुझाकर सीधे जानकी के पास पहुंचे और सारी जानकारी देकर श्री राम को देने के लिए कोई निशानी मांगी.  सीता जी ने उन्हें अपनी चूड़ामणि देते हुए आशीर्वाद देकर विदा किया. इस तरह एक राम-भक्त ने ही संपूर्ण लंका का सर्वनाश कर डाला.


अपनी निःशुल्क कुंडली पाने के लिए यहाँ तुरंत क्लिक करें