How to Please Shani Dev: शनि देव को सामान्य तौर पर लोग क्रूर देवता समझते हैं, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है. वह तो लोगों के साथ सच्चे मित्र सा व्यवहार करते हैं. जिस तरह  एक सच्चा मित्र अपने दोस्त की गलतियों को इंगित कर बताता रहता है कि फलां काम गलत है. इसे नहीं करो वरना इसका दंड भी भोगना पड़ेगा, ठीक उसी तरह का व्यवहार शनि देव का भी है. 


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शास्त्रों में भी कहा गया है कि “हितं मनोहारी च दुर्लभ वच” अर्थात हितकारी वचन कभी भी मधुर नहीं हो सकते हैं. वही सच्चा मित्र माना जा सकता है, जो हमारी कमियों को बिना किसी झिझक के साफ बता दे. इसी तरह संत कबीर दास जी ने भी कहा है, “निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाये” अर्थात निंदा करने को सदैव अपने पास रखना चाहिए, क्योंकि इससे अपनी कमियों का अहसास होता है. कमी पता लगने पर उसे दूर किया जा सकता है. शनि देव भी ऐसे ही हैं, कर्मों के अनुसार आपको रिजल्ट देते हैं. शनि देव के संकेत को समझ कर सुधार नहीं किया तो वह दंड देकर भी सुधार लेते हैं. शनि की ढैय्या हो साढ़े साती हो या फिर दशा में परिवर्तन उनके आते ही कर्मों के परिणाम मिलना स्टार्ट हो जाता है. दूसरों के साथ समता का व्यवहार न रखना शनि को पसंद नहीं है. जो लोग सभी को एक समान देखते हैं और न्याय करते हैं उनसे शनि काफी प्रसन्न रहते हैं. 


सामान्य तौर पर सूर्य और शनि को परस्पर विरोधी और शत्रु माना जाता है, लेकिन यह केवल कार्य स्वभाव के कारण ही है. अन्यथा यह भी मुहूर्त शास्त्र का अध्ययन करने पर साफ हो जाता है. मुहूर्त शास्त्र के वेद प्रकरण में लिखा है कि सूर्य और शनि में कभी भी वेध नहीं होता है. “सुतस्थापित पितृसम्बन्धिनं वेधं नाहूः”  अर्थात पिता और पुत्र संबंध होने के कारण इनका वेध नहीं होता है. पुराणों में इस बात का भी उल्लेख है कि शनि को ही सूर्य का पुत्र क्यों कहा गया है, आगे स्पष्ट किया गया है कि शनि ग्रह में भौतिक रूप से उन तत्वों की उपलब्धता है जिनका संबंध सीधे सूर्य से है.  


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