Shiva and Shankhchur Story: पूजा में बजाए जाने वाले शंख कई प्रकार के होते हैं. जिस घर में उनको विधिवत स्थापना कर बजाया जाता है, उन घरों से निगेटिविटी बाहर निकलकर पॉजिटिव एनर्जी प्रवेश करती है. आज हम आपको ऐसे शंख के बारे में बताएंगे, जो अद्भुत गुणों से संपन्न है. यह शंख भगवान विष्णु को बहुत प्रिय है. इसमें जल भरकर उन्हें अर्पित किया जाता है, लेकिन ऐसा क्या है कि इसी शंख का जल शिवजी के लिए निषेध है. 


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महापराक्रमी दैत्य


सबसे पहले बात करते हैं शंखचूड़ नामक शंख की जो एक महादैत्य की हड्डियों से बना था. पौराणिक कथा के अनुसार, शंखचूड़ नाम का एक महापराक्रमी दैत्य था. विष्णु जी का परम भक्त था. दैत्य ने पुष्कर में ब्रह्मा जी का आशीर्वाद पाने के लिए घोर तपस्या की, उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी प्रकट हुए. शंखचूड़ ने उनसे देवताओं के लिए अजेय होने का वरदान मांगा. ब्रह्मा जी ने तथास्तु बोलकर उन्हें श्रीकृष्ण कवच दिया और आदेश दिया कि वह धर्मध्वज की पुत्री तुलसी से विवाह करे. उनकी आज्ञा से तुलसी से विवाह करने के बाद ब्रह्मा जी और विष्णु जी के आशीर्वाद के फलस्वरूप उसने देवताओं को हराकर तीनों लोकों पर स्वामित्व स्थापित कर लिया.


श्रीकृष्ण कवच


दुखी देवताओं ने शिवजी से मदद मांगी तो वह देवताओं के कष्ट को दूर करने के लिए चल दिए. श्रीकृष्ण कवच और उसकी पत्नी के पतिव्रत धर्म के कारण शिवजी भी उसका कुछ नहीं कर पा रहे थे. देवताओं ने विष्णु जी से आग्रह किया तो वह ब्राह्मण के रूप में गए और दैत्यराज शंखचूड़ से उसका श्रीकृष्ण कवच मांग लिया. विष्णु जी ने शंखचूड़ बनकर तुलसी का शील हरण कर उससे विवाह कर लिया. इससे उसकी शक्ति कम हो गई और शिवजी ने उसका वध कर दिया.


हड्डियों से बना शंख


दैत्यराज की हड्डियों से जिस शंख का जन्म हुआ, उसका नाम शंखचूड़ रखा गया. दैत्यराज भगवान विष्णु को अतिप्रिय था, इसलिए उस शंख में रखा जल भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी को तो अर्पित किया जाता है. इस जल को अर्पित करने से भगवान विष्णु जी के साथ माता लक्ष्मी की कृपा भी प्राप्त होती है, किंतु शिवजी ने उसका वध किया था, इसलिए शिवजी के लिए उसका जल का निषेध है.


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