Sheetala Ashtami Bhog: विभिन्न प्रकार के रोगों और व्याधियों से मुक्ति पाने के लिए मां शीतला देवी की उपासना सदियों से होती चली आ रही है. मान्यता है कि मां की कृपा से ही व्यक्ति निरोगी होकर सुखी जीवन जीता है. प्राचीन काल से देवी देवताओं की आराधना धन, यश, वैभव, कीर्ति, सौभाग्य और उन्नति पाने के लिए ही नहीं बल्कि जीवन की विघ्न बाधाओं और रोग व्याधियों से मुक्ति के लिए भी की जाती है. 


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माता शीतला अष्टमी का व्रत
1. ऐसा ही एक व्रत है माता शीतला अष्टमी का जो चैत्रमास के कृष्ण पक्ष में अष्टमी के दिन किया जाता है. यह पर्व चैत्रमास में होली के बाद आने वाली अष्टमी में होता है. 
2. मान्यता है कि इस मौसम में शरीर के किसी एक अंग या पूरी शरीर में होने वाली जलन जिसे दाह भी कहा जाता है, इसके अलावा बुखार, पीलिया तथा आंखों के रोग तेजी से होते हैं, माता शीतला अपने भक्तों की इस तरह की पीड़ा को हर लेती हैं. 
3. शीतला माता को बासी भोजन का भोग लगाया जाता है जिसे एक दिन पहले ही बना कर रख लिया जाता है. इसी कारण इस अष्टमी को शीतला अष्टमी के अलावा बसौड़ा अष्टमी भी कहा जाता है. 
4. सामान्य तौर पर बासी भोजन नहीं करना चाहिए क्योंकि इसे करने से स्वास्थ्य बिगड़ जाता है किंतु जिस तरह कुछ रोगों के इलाज में  विष की न्यूनतम मात्रा का उपयोग किया जाता  है उसी तरह कुछ बीमारियों में बासी भोजन ही काम करता है. इस दिन माता शीतला देवी की कृपा से बासी भोजन भी अमृत के समान हो जाता है. 
5. माना जाता है कि बासी भोजन करने से रक्त का दबाव यानी ब्लड प्रेशर कंट्रोल होता है. जिस तरह सभी देवी और देवताओं की कोई न कोई सवारी यानी वाहन कोई पशु है उसी तरह  माता शीतला की सवारी गधा है. गधे पर बैठी माता शीतला के हाथों में कलश, सूप, सफाई के लिए मार्जन और नीम के पत्ते होते हैं जो जीवन के दुख दूर कर सुख के प्रदाता हैं.    


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्‍य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)