Shri Lingastakam Stotra In Hindi: हिंदू पंचांग के मुताबिक किसी भी माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रियोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है. शास्त्रों के अनुसार त्रियोदशी का व्रत भगवान शिव को समर्पित होता है. मान्यता है कि विधिविधान से भगवान शिव की पूजा-आराधना और उपवास आदि करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और व्यक्ति के जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं.  


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प्रदोष व्रत की पूजा प्रदोष काल में करना बहुत ही फलदायी माना गया है. मान्यता है कि इस समय की गई भगवान शिव की आराधना महादेव तक जल्द पहुंचती है और भक्तों की मनोकामनाएं जल्द पूरी होती हैं. मान्यता है कि प्रदोष व्रत की पूजा के समय शिव लिंगाष्टकम स्तोत्र का पाठ करना बहुत ही लाभदायी माना गया है. इससे जीवन में विशेष लाभ प्राप्त होते हैं. जानें शुभ मुहूर्त और पूजन विधि. 


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शुक्र प्रदोष व्रत 2024 शुभ मुहूर्त (Shukra Pradosh Vrat 2024 Shubh muhurat)


हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार शुक्र प्रदोष व्रत की तिथि का आरंभ 18 जुलाई रात 8 बजकर 45 मिनट से शुरू होकर 19 जुलाई शाम 7 बजकर 42 मिनट पर इसका समापन होगा.  बता दें कि इस बार आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की त्रियोदशी का व्रत शुक्रवार के दिन पड़ रहा है. इसलिए इसे शुक्र प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाता है. प्रदोष काल का समय देखते हुए प्रदोष व्रत 19 जुलाई शुक्रवार के दिन रखा जाएगा. 


प्रदोष व्रत की पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 7 बजकर 18 मिनट से लेकर रात्रि 9 बजकर 22 मिनट तक है. 


प्रदोष व्रत पूजा विधि


शुक्रवार के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं. इसके बाद शिव जी का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें. पूजा स्थल पर भगवना शिव और मां पार्वती की तस्वीर रखें और उन्हें तिलक लगाएं. इसके बाद उन्हें फल और फूल अर्पित करें और भोग लगाएं. इस दिन अगर व्रत रख रहे हैं, तो फलाहार करें. प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा करें और साथ ही, शिव लिंगाष्टक स्तोत्र का पाठ करें. 


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लिंगाष्टकम स्तोत्र (Shiv Lingastakam Stotra)


ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिङ्गं निर्मलभासितशोभितलिङ्गम् ।


जन्मजदुःखविनाशकलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥१॥


देवमुनिप्रवरार्चितलिङ्गं कामदहं करुणाकरलिङ्गम् ।


रावणदर्पविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥२॥


सर्वसुगन्धिसुलेपितलिङ्गं बुद्धिविवर्धनकारणलिङ्गम् ।


सिद्धसुरासुरवन्दितलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥३॥


कनकमहामणिभूषितलिङ्गं फणिपतिवेष्टितशोभितलिङ्गम् ।


दक्षसुयज्ञविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥४॥


कुङ्कुमचन्दनलेपितलिङ्गं पङ्कजहारसुशोभितलिङ्गम् ।


सञ्चितपापविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥५॥


देवगणार्चितसेवितलिङ्गं भावैर्भक्तिभिरेव च लिङ्गम् ।


दिनकरकोटिप्रभाकरलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥६॥


अष्टदलोपरिवेष्टितलिङ्गं सर्वसमुद्भवकारणलिङ्गम् ।


अष्टदरिद्रविनाशितलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥७॥


सुरगुरुसुरवरपूजितलिङ्गं सुरवनपुष्पसदार्चितलिङ्गम् ।


परात्परं परमात्मकलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥८॥


लिङ्गाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेत् शिवसन्निधौ।


शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥ 


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)