Shukrawar Vrat Katha: शुक्रवार का व्रत शुक्र ग्रह से संबंधित जीवन की बाधाओं को शांत कर सुख शांति और समृद्धि देने वाला होता है. इस दिन सुबह स्नान कर साफ कपड़े पहन कर शुक्र ग्रह का ध्यान कर देवी की मूर्ति को स्थापित करें और सफेद फूल, गंध आदि से पूजन करें. इसके बाद ब्राह्मणों को बुला कर खीर का भोजन कराएं और साथ ही मूर्ति सहित पूजन सामग्री दान कर दें. सात शुक्रवार तक लगातार व्रत करने से जीवन के सारे कष्ट दूर होते हैं और सुख की प्राप्ति होती है.


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इस तरह से शुक्रवार के व्रत की कथा


 


एक नगर में तीन युवाओं में गहरी दोस्ती थी और तीनों ही विवाहित थे. इनमें से पहले का गौना हो चुका था उसने अपने दूसरे मित्र से कहा कि तुम भी पत्नी का गौना करा लो तो सुख से जीवन जियो. इस सुझाव को दूसरा वाला मानने लगा लेकिन तीसरा जिसे धर्म कर्म की जानकारी थी बोला कि अभी शुक्र अस्त चल रहे हैं ऐसे में विदाई नहीं कराई जाती है, तुम शुक्र उदय होने के बाद ही जाना. उसके घर वालों ने भी यही बात समझाई लेकिन दूसरा वाला नहीं माना और शुक्र अस्त में ही चला गया.


 


ससुराल वाले भी असमंजस में पड़ गए और उन्होंने भी शुक्र उदय होने तक इंतजार करने को कहा लेकिन उसकी जिद्द के आगे सबने विदा कर दिया. वह जिस वाहन पर पत्नी के साथ बैठ कर घर वापस आ रहा था वह रास्ते में दुर्घटनाग्रस्त हो गया और पत्नी भी घायल हो गई. किसी तरह वह लोग जंगल के रास्ते में पैदल चले तो डाकुओं ने उनके कपड़े गहने आदि लूट लिए. किसी तरह से घर पहुंचे तभी उस युवक को सांप ने काट लिया और वैद्यों ने नब्ज देख कर सिर्फ तीन दिन का जीवन बताया.


 


जानकारी पर धर्म कर्म वाला तीसरा युवक उनके घर पहुंचा उसने कहा कि यह शुक्र अस्त में किए गए कार्य का परिणाम है. यदि इन दोनों को इसी समय मायके भेज दिया जाए और शुक्र उदय होने पर ही विदा कराया जाए तो संकट टल सकता है. ऐसा ही किया गया और दूसरा युवक अपनी पत्नी के साथ ससुराल पहुंचा दिया गया जहां सामान्य से उपचार के बाद सांप के काटने का जहर खत्म हो गया और युवक सामान्य हो गया. इसके बाद शुक्र उदय होने पर विधि विधान से दोनों को विदा किया गया. दोनों आनंद से रहने लगे. शुक्रवार के दिन व्रत को कर इस कथा को सुनने से परिवार की बड़ी से बड़ी विपत्ति भी दूर हो जाती है.