Tarkulha Devi Mandir History: मां दुर्गा की उपासन का पर्व चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है. इस दौरान 9 दिनों तक मां के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाएगी. भारत में माता रानी के कई मंदिर मौजूद हैं. हालांकि, इनमें से कुछ मंदिर शक्तिपीठ और अनोखे माने जाते हैं. वैसे तो इन मंदिरों में हमेशा भक्त का तांता लगे रहती है, लेकिन खासकर नवरात्रों के मौके पर भक्त मां के दर्शन के लिए उमड़ पड़ते हैं. आज एक ऐसे ही मंदिर की बात करेंगे. इस मंदिर का नाम तरकुलहा है, जो गोरखपुर- देवरिया मार्ग के किनोर स्थित है.


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आस्था का केंद्र


तरकुलहा देवी मंदिर गोरखपुर से लगभग 22 किलोमीटर दूर देवरिया मार्ग पर स्थित है. यह मंदिर भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र माना जाता है. तरकुल शब्द ताड़ से मिलकर बना है. यह मंदिर ताड़ के पेड़ों के बीच में स्थित है, जिस वजह से इसका नाम तरकुलहा देवी मंदिर पड़ा.


स्वतंत्रता आंदोलन का केंद्र


यह मंदिर आस्था के साथ स्वतंत्रा आंदोलन का भी प्रमुख केंद्र रहा है. मान्यताओं के अनुसार, चौरी-चौरा तहसील में स्थित यह मंदिर डुमरी रियासत में पड़ता था. इसी रियासत के बाबू बंधू सिंह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे. वह ताड़ के घने जंगलों में पिंडी बनाकर मां की आराधना करते थे.


ताड़ के पेड़ से खून


बाबू बंधू सिंह से घबराकर अंग्रेजों ने उन्हें धोखे से गिरफ्तार कर लिया और फांसी की सजा सुनाई. कहते हैं कि उन्हें सात बार फांसी पर लटकाया गया और वह बच गए, क्योंकि बार-बार फांसी का फंदा टूट जाता था. इसके बाद उन्होंने तरकुलहा देवी से आग्रह कर अपने चरणों में जगह देने की विनती की और आठवीं बार खुद ही फंदा अपने गले में डालकर शहीद हो गए. उनके शहीद होते ही दूसरी तरफ स्थित ताड़ का पेड़ टूट गया और उसमें से खून निकलने लगा. यह देखकर बाद में लोगों ने उसी जगह पर तरकुलहा देवी मंदिर का निर्माण कराया.


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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)