Tulsi Ramayan in hindi: राम कथा की लालसा पूरी करनी है तो गुरु के सामने भिखारी बन जाइए. मुनि भरद्वाज स्वयं बहुत ज्ञानी थे, तपस्वी थे और परमार्थ पथ के जानने वाले थे, पर राम कथा सुनने और प्रभु के गूढ़ रहस्य जानने के लिए गुरु याज्ञवल्क्य जी के आगे बिल्कुल दीन-हीन बनकर खड़े हुए. उनका निश्छल प्रेम देखकर गुरु ने भी उनको प्रेम से अपना कर राम कथा का प्रसाद भी दिया. प्रयागराज में कैसे मिले दोनों मुनि, उनके बीच कैसी हुई वार्ता, दोनों मुनियों के मिलन प्रसंग के साथ आगे बढ़ाते हैं रामचरित मानस की कथा.


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एक बार भरि मकर नहाए।


सब मुनीस आश्रमन्ह सिधाए।।


जागबलिक मुनि परम बिबेकी।


भरद्वाज राखे पद टेकी।।



एक बार फिर मकर संक्रांति पड़ी और प्रयागराज में आ जुटे मुनियों के समूह. पूरे मकर भर त्रिवेणी में स्नान किया, फिर सारे मुनीश्वर अपने-अपने आश्रमों को लौट गए लेकिन भरद्वाज जी ने परम विवेकी याज्ञवल्क्य के चरण पकड़ लिए और काफी अनुनय विनय करके उन्हें अपने आश्रम में रोक लिया.



सादर चरन सरोज पखारे।


अति पुनीत आसन बैठारे।।


करि पूजा मुनि सुजसु बखानी।


बोले अति पुनीत मृदु बानी।।



बहुत आदर के साथ उनके चरण कमल धोए, फिर उन्हें अति पुनीत आसन पर विराजमान किया. पूजा करके मुनि के सुंदर यश का बखान किया और बहुत पवित्र व कोमल वाणी से बोले.


 


नाथ एक संसऊ बड़ मोरे। 


करगत बेदतत्व सब तोरें।। 


कहत सो मोहि लागत भय लाजा। 


जौं न कहउं बड़ होइ अकाजा।।



हे नाथ! मुझे एक बड़ा भारी संशय है. वेदों के सारे तत्व आपकी मुट्ठी में हैं. आपके आगे वह संशय कहते हुए मुझे डर भी लग रहा है और लाज भी आ रही है लेकिन अगर नहीं कहता हूं तो मेरा ही बड़ा भारी नुकसान हो जाएगा.



संत कहहिं अस नीति प्रभु श्रुति पुरान मुनि गाव।


होहि न बिमल बिबेक उर गुर सन किएँ दुराव।।



हे प्रभु! संत ऐसी नीति कहते हैं और वेद, पुराण, मुनिजन भी यही गाते हैं कि अगर गुरु से कुछ भी छिपा लिया तो हृदय में निर्मल ज्ञान का अनुभव कभी नहीं हो सकता.


 


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 


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