Vinay Patrika Tulsidas: हनुमान जी की महिमा अपरंपार है. जो श्रद्धालु पूरे भक्ति भाव से बजरंग बली की अराधना करता है. उनको पवन पुत्र कभी निराश नहीं करते हैं. उनकी महिमा के बारे में गोस्वामी तुलसीदास ने विनय पत्रिका नामक ग्रंथ में विस्तार से बताया है. इनमें ब्रज भाषा में पद लिखे हुए हैं. आज के लेख में बजरंग बली के इन्हीं कुछ पदों और उनके भावार्थ को विस्तार से बताने की कोशिश करेंगे. 


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पद


जयति-अंजनी-गर्भ-अंभोधि-संभूत-विधु, विवुध-कुल कैरवानन्दकारी।
केसरीचारु-लोचन-चकोरक-सुखद, लोकगन सोक-संतापहारी ॥


जयति जय बालकपि कलि-कौतुक उदित चंडकर-मंडल-ग्रास-कर्ता।
राहु-रवि-सक पवि-गर्व-खीकरन सरन भयहरन जय भुवन-भत॥


जयति रनधीर, रघुबीर-हित, देवमनि, रुद्र-अवतार, संसार-पाता।
विप्र-सुर-सिद्ध-मुनि-आशिषाकारवपु,विमलगुन, दुद्धि-कारिधि-विधाता॥


जयति सुग्रीव सिच्छादिरच्छन-निपुन, बालि-वल-सालि-वध-मुख्यहेतू।
जलधि-लंघन सिंह सिंहिका-मद-मथन, रजनिचर-नगर-उत्पात-केतू॥


जयति भूनन्दिनी-सोच-मोचन विपिन-दलन घननादवस विगत संका।
लूम लीला अनल-ज्वालमाला-कुलित, होलिकाकरन लंकेस-लंका॥


जयति सौमित्रि-रघुनंदनानंदकर, ऋच्छ-कपि कटक-संघट-विधायी।
बद्ध-वारिधि-सेतु, अमर-मंगल हेतु, भानुकुल-केतु-रनविजयदायी॥


जयति जय वज्र तनु दसन नख मुख विकट,चंड-भुजदंडतरु-सैल-पानी।
समर-तैलिक-यंत्र तिल-तमीचर-निकर, पेरिडारे सुभट घालि घानी॥


जयति दसकंठ-घटकरन-वारिद-नाद-कदन-कारन, कालनेमि-हता।
अघट घटना-सुघट सुघट-विघटन विकट,भूमि-पाताल-जल-गगन-गंता॥


जयति विस्व-विख्यात वानैत-विरुदावली,विदुष वरनत वेद विमल वानी।
दास तुलसी-त्रास-समन सीतारमन, संग सोभित राम-राजधानी॥


भावार्थ


विनय पत्रिका में गोस्वामी तुलसी दास लिखते हैं कि हे हनुमान जी, आपकी जय हो. आप अंजनी के गर्भरूपी समुद्र से उत्पन्न होकर चन्द्रमा के समान देवकुल रूपी कुमुद को विकसित करने वाले हो. आप अपने पिता के शरीर के सुन्दर नेत्र रूपी चकोरों को सुख देने वाले और समस्त लोकों का शोक-सन्ताप हरने वाले हो. 


आपकी जय हो, जय हो. आपने बचपन में उदयकालीन प्रचण्ड रवि-मण्डल को लाल खिलौना समझकर निगल लिया था. उस समय आपने राहु, सूर्य, इन्द्र और उनके वज्र का गर्व तोड़ दिया था. हे शरणागतों का भय हरने वाले. हे चौदह भुवनके स्वामी. आपकी जय हो. 


विनय पत्रिका में लिखा है कि हे युद्धक्षेत्र में धैर्य धारण करने वाले महावीर जी, आपकी जय हो. आप श्रीरामजी के हितार्थ देव-शिरोमणि रुद्र के अवतार हो और संसार के रक्षक हो . आपका शरीर ब्राह्मण, देवता, सिद्ध और मुनियों के आशीर्वाद का साकार रूप है. आप निर्मल गुण और बुद्धिसागर तथा विधाता हो.


हे उचित शिक्षा आदि से सुग्रीवको रक्षा करने में चतुर हनुमान जी, आपकी जय हो. आप महापराक्रमी बालि का वध के मुख्य कारण हो. आप समुद्र लांधते समय सिंहिका नाम की राक्षसी का मद-मर्दन करने वाले सिंह हो. निशाचरों की लंकापुरी में उत्पात करने के लिए केतु हो.


हे जानकी जी को चिन्ताओं को दूर करने वाले, अशोक वन को उजाड़ने की नीयत से निःशंक होकर अपने को मेघनाद के ब्रह्मास्त्र में बंधवाने वाले, आपकी जय हो. आपने अपनी पूंछ की लीला द्वारा आग की ज्वालमाला से आर्त रावण की लंकापुरी में होली-दहन-सा मचा दिया था.


हे राम और लक्ष्मण को आनन्दित करने वाले, आपकी जय हो. आप रीछ और बन्दरों की सेना संघटित करने के विधायक होकर समुद्र पर पुल बांधने वाले हो. देवताओं का कल्याण करने वाले हो और सूर्यकुल-केतु (ध्वजा) श्रीराम जी को संग्राम में विजय-लाभ कराने वाले हो.


तुलसीदास लिखते हैं कि आपकी  जय हो, जय हो. आपका शरीर, दांत, नख और विकट मुंह वज्र के समान हैं. आपके भुजदंड बड़े प्रचंड हैं. आप वृक्षों और पर्वतों को हाथों से उठाने वाले हो. आपने समर-रूपी तेल पेरने के कोल्हू, राक्षस-समूह और बड़े-बड़े योद्धा रूपी तिलो की घानी डालकर पेर डाला है. 


हे रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद के नाश के कारण तथा कालनेमि राक्षस को मारने वाले, आपकी जय हो. आप असम्भव को सम्भव और सम्भव को असम्भव कर दिखाने में बड़े ही विकराल हो. आप पृथ्वी, पाताल, जल और आकाश में गमन करने वाले हो. 


विनय पत्रिका में लिखा है कि हे जगत्प्रसिद्ध वाणैत, आपकी जय हो. पंडित और वेद विमल वाणी से आपकी गुणावली का वर्णन करते हैं. आप तुलसीदास के भय को नाश करने वाले श्री सीतारमण के साथ अयोध्यापुरी में सदा शोभायमान रहते हो.