vinay patrika ke pad: तुलसीदास जी विनय पत्रिका में बजरंग बली का गुणगान करते हुए लिखते हैं कि आप सुग्रीव के गये हुए राज्य को दिलाने वाले, सांसारिक संकटों का नाश करने वाले और दानवों के दर्पको कुचल डालने वाले हो. आपका श्रेष्ठमुख प्रभातकालीन सूर्य के समान है. नेत्र पीले हैं और आप भूरे रंग का कठोर जटाजूट धारण किए रहते हो.


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पद


जयति यात-संजात, विख्यात विक्रम, वृहद्,
घाहु, बलविपुल, वालधि बिसाला।।
जातरूपाचलाकार विग्रह, लसल्लोम,
विद्युल्लता ज्वालमाला॥


जयति बालार्क वर-बदन, पिंगल-नयन,
कपिस-कर्कस-जटाजूटधारी।
विकट भृकुटी, बन दसन नख, बैरि-मद,
मत्त-कुंजर-पुंज-कुंजरारी॥


जयति भीमार्जुन-ज्याल सूदन-गर्व,
हर, धनंजय-रथ-त्राण- केतू।
भीष्म द्रोण-कर्णादि-पालित, काल,
दृक सुयोधन चमू-निधन-हेतू॥


जयति गतराजदातार, हन्तार,
संसार-संकट, दनुज-दर्पहारी।
इति अति भीति-ग्रह-प्रेत-चौरानल,
व्याधि-बाधा-शमन-घोरमारी॥


जयति निगमागम व्याकरन करन लिपि,
काव्य कौतुक-कला-कोटि-सिंधो।
साम-गायक, भक्त-कामदायक,
वामदेव, श्रीराम-प्रिय-प्रेम-बंधो॥


जयति धर्मासु-संदग्ध-संपाति,
नवपच्छ-लोचन-दिव्य-देहदाता।
कालकलि-पाए संताप-संकुल सदा,
प्रनत तुलसीदास तात-माता॥


व्याख्या


हे पवन कुमार, आपकी जय हो. आपका पराक्रम विख्यात है, भुजाएं विशाल हैं, बल असीम है और पूंछ बड़ी लम्बी है. आपका शरीर सुमेरु पर्वत के आकार का है. उस पर विद्युल्लता की ज्वालमाला के समान रोम सुशोभित हो रहे हैं. 


जय हो. आपका श्रेष्ठमुख प्रभातकालीन सूर्य के समान है. नेत्र पीले हैं और आप भूरे रंग का कठोर जटाजूट धारण किए रहते हो. आपकी भौहें टेढ़ी हैं, दांत और नख वज्र के समान हैं. आप शत्रुरूपी मदमत्त हाथियों के लिए सिंह के समान हो. 


आपकी जय हो. आप भीम, अर्जुन और गरुड़ के गर्व को चूर्ण करने वाले तथा अर्जुन के रथ की पताका पर बैठकर उसकी रक्षा करने वाले हो. आप भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण आदि से रक्षित, कालकी दृष्टि के समान दुर्योधन की सेना का संहार करने के मुख्य कारण हो.


जय हो. आप सुग्रीव के गये हुए राज्य को दिलाने वाले, सांसारिक संकटों का नाश करने वाले और दानवों के दर्पको कुचल डालने वाले हो. ईति, अत्यन्त डर, ग्रह, प्रेत, चोर, आग तथा रोग की बाधाओं एवं महामारी का नाश करने वाले हो.


आपकी जय हो. आप वेद, शास्त्र और व्याकरण को लिपिबद्ध करने वाले तथा काव्य के दस अंगों एवं करोड़ों कलाओं के समुद्र हो. आप सामवेद का गान करने वाले तथा भक्तों की कामना पूरी करने वाले शिवरूप हो और रामजी के प्रिय प्रेमी बन्धु हो.


आपकी जय हो. आप सूर्य की प्रखर किरणों से जले सम्पाति नामक गीध को नवीन पर नेत्र और दिव्य शरीर देने वाले हो. कलिकाल के पाप-सन्तापों से सदा परिपूर्ण यह तुलसीदास आपको प्रणाम करता है; क्योंकि पिता-माता आप ही हो.


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