Premanand Maharaj Ji: वृंदावन के मशहूर संत प्रेमानंद जी महाराज का एकांतिक वार्तालाप कार्यक्रम बेहद लोकप्रिय है. इस सत्‍संग में महाराज जी रोजाना भक्‍तों के प्रश्‍नों के उत्‍तर देते हैं, उनकी जिज्ञासाएं शांत करते हैं, उनकी समस्‍याओं के समाधान बताते हैं. साथ ही उन्‍हें भगवत प्राप्ति की राह पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं. उन्‍हें नामजप करके परमात्‍मा को पाने का आसान रास्‍ता बताते हैं. ऐसे ही एक भक्‍त ने अपनों को खोने के गम को लेकर प्रश्‍न किया कि महाराज जी, अपनों को खोने के कारण मन में भगवान के प्रति अश्रद्धा पैदा हो गई है, ऐसे में भक्ति कैसे करूं? 


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अंदर बैठे परमपिता को पहचानिए 


महिला भक्‍त ने सत्‍संग में पूछा कि हाल ही में मैंने अपने पिता को खो दिया है, जिससे मेरे मन में भगवान को लेकर अश्रद्धा हो गई है. मैं क्‍या करूं. इस पर प्रेमानंद महाराज जी ने कहा- क्‍या तुम अपने पापाजी को जानती हो? तुमने केवल उनके शरीर को अपना पापा जी माना. उस शरीर के अंदर जो परमपिता बैठे थे, उनसे अश्रद्धा कर रही हो और केवल शरीर को ही पापा जी मान रही हो. जबकि उनके अंदर जो सभी के परमात्‍मा रूपी पिता बैठे हैं, उसे तो आपने जाना ही नहीं. इसका मतलब है कि आपके मन में भगवान के प्रति पहले भी श्रद्धा नहीं था, जब आपके पिता थे. इसलिए पिता के अंदर बैठे परमपिता को जाना नहीं, उन्‍हें माना नहीं. ऐसे में यह समस्‍या तो होनी ही थी. 
  
सभी के अंदर हैं भगवान 


प्रेमानंद महाराज जी आगे कहते हैं कि वासुदेव भगवान सबके अंदर बैठे हैं. यदि आप केवल शरीर से प्रेम कर रहे हैं तो यह प्रेम झूठा है. क्‍योंकि जब उसके अंदर बैठा परमपिता अंतर्धान हो गया तो आपने शरीर को जला दिया, यानी कि शरीर से भी प्रेम नहीं और अंदर बैठे परमात्‍मा से भी नहीं. इसलिए कष्‍ट हो रहा है. अगर भगवान से भी प्रेम करो तो ये दुख नहीं रहेगा. आपका मंगल होगा. आप सच्‍चा सुख पाएंगे. यदि भगवान में अश्रद्धा करोगे तो भोग-व्‍यसनों में पड़ जाओगे. दुख घेर लेंगे. इसलिए प्रभु का नाम जप करो तो सब अच्‍छा होगा.